दिल्ली के इतिहास की शरूआत वहाँ से होती जब यहाँ गुलाम वंश ने अपना अधिपत्य जमाया । हांलाकि चैाहान वंश के समाप्ति के बाद दिल्ली का महत्व काफी बढ़ गया था ।
इससे पहले कन्नौज, अजमेर सामरिक और व्यापारिक महत्व की जगहें थी ।
अपने इसी उद्देष्य के कारण गजनी ने 27 वर्षों में (1000-1027 के बीच )भारत में 17 बार आक्रमण किए। वह पहाड़ी क्षेत्र गजनी को एक शक्तिषाली राज्य बनाना चाहता था।
उसने अफगानिस्तान और खुरासन पर अधिकार जमा लिया । इसके बाद उसने लूटपाट मचाना शुरू कर दिया । उसने उत्तर भारत में नागरकोट, मथुरा , कन्नौज तथा थानेश्वर के मंदिरों और कस्बों भारी लूटपाट मचाया। 1025 में गुजराते सोमनाथ मंदिर में सर्वाधिक लूट मचाई जिसका राजपूतों ने काफी विरोध किया मगर वे असंगठित होने के कारण हार गए। सोमनाथ से उस वक्त 20 मिलियन रूपये की लूटमार की । कुछ इतिहासकार यह मानते हैं कि गजनवी का आक्रमण भारत में इस्लाम फैलाना और मुस्लमानों में लोकप्रियता हासिल करना था।
व्यापारिक रिश्ते को भी मजबूती प्रदान की और मुस्लिम व्यापारी यहाँ आकार बसने लगे । गजनवी के आक्रमण ने व्यापारिक और सांस्कृतिक विकास को भी बढ़ावा दिया जो भारत और मध्य एषिया के मुस्लिम निवासियों के आपसी संपर्क में आने से हुआ। मगर गजनवी के आक्रमण से भारतीय बेषकीमती कलात्मक मंदिरों और मूतिर्यों को भारी क्षति पहुँची ।
सलजूकों ने जब इस क्षेत्र पर नियंत्रण किया था जो उन्होंने सैफ-उद-दीन की पत्नी के जेवर भी ले लिए थे। गद्दी ग्रहण करने के बाद एक दिन सैफ-उद-दीन ने किसी स्थानीय सरदार को यह जेवर पहने देख लिया और तैश में आकर उसे मार डाला। जब मृतक के भाई को कुछ महीनो बाद मौका मिला तो उसने सैफ-उद-दीन को बदले में भाला मरकर मार डाला। इस तरह सैफ-उद-दीन का शासनकाल केवल एक वर्ष के आसपास ही रहा। गियास-उद-दीन नया शासक बना और उसके छोटे भाई शहाब-उद-दीन ने उसका राज्य विस्तार करने में उसकी बहुत वफादारी से मदद करी।
वह मुहम्मद गौरी का गुलाम। वह एक कुशल प्रशासक सबित हुआ। और अपनी सैनिक ताकत के दम पर एक शक्तिशाली राज्य का निर्माण किया । उसे अपनी ताकत बरकार रखने के लिए अपने प्रतिद्धंदियों को हाराना जरूरी था । गजनी का शासक योल्दोज ने उस वक्त पंजाब पर कब्जा जमा लिया था और अपनी क्षमता बढ़ा रहा था।ऐबक ने उसे हाराया और पंजाब को याल्दोज के चंगुल से आजाद कराया ।
एबक कुशल प्रशासक होने के साथ साथ कला,साहित्य और भवन निर्माण यानि स्थापत्य कला का शौकीन था।
उसने प्रसिद्ध कुतुब मीनार को बनाया मगर उसे पूरा नहीं कर सका । यह मिनार मशहूर सूफी संत कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी के नाम पर बनाया गया था। खास बात यह है कि दिल्ली में मौजूद इस मिनार को तीन राजाओं ने पूरा किया ऐबक ने इसे शुरू किया फिर बेसमेंट ही बना पाया था कि उसकी मौत पोलो खेलते हुए हो गयी। इसके बाद अगली तीन मंजिलों को एल्तुतमिष ने पूरा करावाया मगर वह भी अधूरा ही बना पाया और उसकी मौत हो गई । फिर उसे फिरोज शाह तुगलक ने आखिरी के दो मंजिले बनाए।
खैर बात कर रहें कुतुबुद्दीन एबक के भवन निर्माण की तो ऐबक ने इसके अलावा दो और प्रसिद्ध भवन बनाए
दिल्ली में मौजूद क्वावत उल ईस्लाम नाम की मस्जिद और ढाई दिन की झोपड़ा नाम से प्रसिद्ध मस्जिद जो आज अजमेर है ।
ऐबक में एक और खूबी थी - उसने लाख बख्श की उपाधि लोगों ने दी थी । क्योंकि वह बड़ा ही दयालु था और काफी दान करता था।
एबक के दरबार में हसन आजमी और मुबारक शाह नाम के दो प्रसिद्ध साहित्यकार भी थे ।
1210 ई में पोलो खेल खेलते हुए एबक की मौत घोड़े से गिरकर हो गई । इसक बाद फिर शुरू हुआ सत्ता का संर्घष।
आरम शाह जो ऐबक का बेटा था वह शासक बनना चाहता था और शासक बनाया भी गया था मगर नवाबों ने उसे बतौर शासक स्वीकार नहीं किया । तो ऐबक के दामाद को जो पहले एबक का गुलाम था उसे शासन करने के लिए बुलाया गया । उसका नाम था एल्तुतमिश । इस तरह दिल्ली को एक और गुलाम बतौर शासक मिला। एल्तुतमिश उस वक्त बदायुं का सुबेदार था।
एल्तुतमिश ने दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया ।शासक बनते ही उसके सामने कई समस्याएं आती गई जिसे वह काफी कुषलता से हल करता गया । वह भी अपने ससुर तथा मालिक की तरह कुषल प्रषासक था।
गजनी का यल्दोज तथा सिन्ध और मुल्तान के कुबाचा का समाना किया । उसने तुर्कीस साम्राज्य को गजनी और अन्य विदेषी शक्तियों से आजाद कराया ।
वह सैनिक कूटनीति में भी माहिर था एक जूना के प्रिंस का पीछा करते हुए चंगेज खा आ रहा था और प्रिंस ने एल्तुतमिश से शरण मांगी। एल्तुतमिश जानता था कि अगर उसने शरण दी तो चंगेज खां का भी सामना करना पड़ेगा जिससे काफी जानमाल की हानि होगी। अतः उसने प्रिंस को यह कहकर टाल दिया कि यहां की जलवायु उसके लिये उपयुक्त नहीं होगी।
इस प्रकार चंगेज खां के गुस्से से उसने अपने राज्य को बचा लिया।
उसके दरबार में मिन्हाज उस सिराज नाम का प्रसिद्ध लेखक हुआ करता था। मिन्हाज की लिखी बातों से एल्तुतमिश के शासन काल की जानकारी मिलती है। इसके अलावा उसके दरबार में रूहानी, उस्मानी नामक लेखक भी थे। शिया और हिन्दुओं के प्रति उसका व्यवहार बड़ा ही कठोर था।
एल्तुतमिश की बेटी रजिया एल्तुतमिश बाद दिल्ली की सुल्तान बनी
इससे पहले कन्नौज, अजमेर सामरिक और व्यापारिक महत्व की जगहें थी ।
कई छोटे-छोटे राज्य भारत में उभर कर आए जो आगे चलकर काफी शक्तिशाली हो गए। वे अपने सीमाओं के विस्तार के लिए लगे हुए थे । भारत में उस वक्त राजपूत शासक काफी शाक्तिशाली थे मगर उनमें एकता की कमी थी । वे आपस में लड़कर अपनी ताकत और क्षमता खो रहे थे। ऐसे में विदेशी आक्रमणकारी भारत के प्रति आर्कषित होने लगे। इन आक्रमणकारियों में तुर्क का नाम पहले आता है। भारत के शासकों के आपसी झगड़े और भारत में मौजूद अकूत संपत्ति ने तुर्को को भारत आक्रमण करने के लिए प्ररित किया ।
इनमें ऐसा ही शासक है महमूद गजनी
कौन थे तुर्क
ये लड़ाकु जाति थी। बगदाद के अब्बासी खलीफा ने अपनी सुरक्षा के लिए नियुक्त किया था। नवमीं शताब्दि में जब खलीफा की ताकत कमजोर हो गई तो तुर्को ने उनकी जगह लेना शुरू कर दिया और धीरे धीरे तुर्को ने प्रांतों पर सत्ता हासिल कर लिए और गर्वनर बनते गए। कुछ ने सीधे खलीफा को चुनौति देना शुरू कर दिया । एक ऐसे ही गर्वनर ने आफगानिस्तान की गजनी पर अपना अधिकार कर लिया और नए शासकों की एक श्रंखला की शुरूआत हुई । उसे गजनवी कहा जाने लगा।इनमें ऐसा ही शासक है महमूद गजनी
कौन है महमूद गजनी
महमूद गजनी का जन्म 971 ई को हुआ । भारत की संपत्ति और मौजूदा हालात को दखकर गजनी ने उत्तर पष्चिम भारत पर आक्रमण करने की सोची । उस वक्त इन प्रांतों में गर्जुर और प्रतिहारों का शासन था और आपसी लड़ाई के कारण वे कमजोर पड़ गए थे।अपने इसी उद्देष्य के कारण गजनी ने 27 वर्षों में (1000-1027 के बीच )भारत में 17 बार आक्रमण किए। वह पहाड़ी क्षेत्र गजनी को एक शक्तिषाली राज्य बनाना चाहता था।
उसने अफगानिस्तान और खुरासन पर अधिकार जमा लिया । इसके बाद उसने लूटपाट मचाना शुरू कर दिया । उसने उत्तर भारत में नागरकोट, मथुरा , कन्नौज तथा थानेश्वर के मंदिरों और कस्बों भारी लूटपाट मचाया। 1025 में गुजराते सोमनाथ मंदिर में सर्वाधिक लूट मचाई जिसका राजपूतों ने काफी विरोध किया मगर वे असंगठित होने के कारण हार गए। सोमनाथ से उस वक्त 20 मिलियन रूपये की लूटमार की । कुछ इतिहासकार यह मानते हैं कि गजनवी का आक्रमण भारत में इस्लाम फैलाना और मुस्लमानों में लोकप्रियता हासिल करना था।
मेहमूद गजनवी के आक्रमण का प्रभाव
महमूद गजनवी के आक्रमण ने भारत में आपसी झगड़े से उपजे कमजोरी को उजागर कर दिया । वहीं दूसरी तरफ कुछव्यापारिक रिश्ते को भी मजबूती प्रदान की और मुस्लिम व्यापारी यहाँ आकार बसने लगे । गजनवी के आक्रमण ने व्यापारिक और सांस्कृतिक विकास को भी बढ़ावा दिया जो भारत और मध्य एषिया के मुस्लिम निवासियों के आपसी संपर्क में आने से हुआ। मगर गजनवी के आक्रमण से भारतीय बेषकीमती कलात्मक मंदिरों और मूतिर्यों को भारी क्षति पहुँची ।
कौन है मोहम्मद गौरी?
महमूद गजनवी के आक्रमण ने तुर्कों के लिए भारत का रास्ता खोल दिया । भारत की राजनीतिक ताकत कमजोर थी । भारतीय राजा थे तो बड़े वीर और साहसी मगर आपस इतनी लड़ाई होती थी कि वे इससे कमजोर हो चुके थे।गोरी का परिचय
गोरी राजवंश की नीव अला-उद-दीन जहानसोज ने रखी और सन् 1161 में उसके देहांत के बाद उसका पुत्र सैफ-उद-दीन गोरी सिंहासन पर बैठा। अला-उद-दीन जहानसोज ने अपने दो भतीजों - शहाब-उद-दीन और गियास-उद-दीन - को कैद कर रखा था । (यही शहाब-उद-दीन आगे चलकर मुहम्मद गौरी कहलाया।) सैफ-उद-दीन ने उन्हें रिहा कर दिया। उस समय गोरी वंश गजनवियों और सलजूलकों अधीन था । गजनवी 1148-1149 में ही खत्म हो गए थे लेकिन सलजूकों का तब भी जोर था और उन्होंने कुछ काल के लिए गोर प्रान्त पर सीधा कब्जा कर लिए था, हालांकि उसके बाद उसे गोरियों को वापस कर दिया था।सलजूकों ने जब इस क्षेत्र पर नियंत्रण किया था जो उन्होंने सैफ-उद-दीन की पत्नी के जेवर भी ले लिए थे। गद्दी ग्रहण करने के बाद एक दिन सैफ-उद-दीन ने किसी स्थानीय सरदार को यह जेवर पहने देख लिया और तैश में आकर उसे मार डाला। जब मृतक के भाई को कुछ महीनो बाद मौका मिला तो उसने सैफ-उद-दीन को बदले में भाला मरकर मार डाला। इस तरह सैफ-उद-दीन का शासनकाल केवल एक वर्ष के आसपास ही रहा। गियास-उद-दीन नया शासक बना और उसके छोटे भाई शहाब-उद-दीन ने उसका राज्य विस्तार करने में उसकी बहुत वफादारी से मदद करी।
ऐसे बढ़ता गया गौरी
शहाब-उद-दीन (उर्फ मुहम्मद गौरी) ने पहले गजनी पर कब्जा किया, फिर 1175में मुल्तान और ऊच पर और फिर 1186 में लाहौर पर। तब तक भारत में मुहम्मद गोरी आक्रमण कर चुका था।
पढ़िए तराईन की लड़ाई ।
जब उसका भाई 1202 में मरा तो शहाब-उद-दीन मुहम्मद गोरी सुलतान बन गया। अफगानिस्तान में स्थित छोटे से घोर या गोर राज्य में शासक था मोहम्मद गोरी । उसने गजनी पर कब्जा कर लिया इसके बाद गजनी को अपने भाई को सौंप कर भारत की तरफ अपना ध्यान लगाया । भारत में मुस्लिमों को स्थापित करने का श्रेय मुहम्मद गोरी को जाता है। मुहम्मद गौरी 1190 तक सम्पूर्ण पंजाब में राज करता था। और भटिंडा से अपना राजकाज करता था। चैहान साम्राज्य स्थापित करने के लिए पृथ्वी राज चैहान को पंजाब में कब्जा करना जरूरी था। और इसीलिए गौरी से निपटने का फैसला किया।
यहां से गुलाम वंश की नीव पड़ी जो 1206 से शुरू होकर 1290 तक चली। इस पीड़ी में आने वाले अधिकांष शासक गुलाम थे इसी लिए इस वंश का नाम गुलाम वंश पड़ा।
जानते हैं इस वंश के प्रमुख शासकों के बारे में
सबसे पहले
जानते हैं क्या हुआ
दिल्ली,कन्नौज, अजमेर, बनारस इत्यादि महत्वपूर्ण जगहों पर कब्जा करने के बाद गौरी गजनी लौट और भारत के जीते गए पं्रातों की बागडोर 15 मार्च 1206 में अपने गुलाम को सौंप गया । उसका नाम था कुतुबुद्दीन ऐबकयहां से गुलाम वंश की नीव पड़ी जो 1206 से शुरू होकर 1290 तक चली। इस पीड़ी में आने वाले अधिकांष शासक गुलाम थे इसी लिए इस वंश का नाम गुलाम वंश पड़ा।
जानते हैं इस वंश के प्रमुख शासकों के बारे में
सबसे पहले
कुतुबुद्दीन ऐबक
वह मुहम्मद गौरी का गुलाम। वह एक कुशल प्रशासक सबित हुआ। और अपनी सैनिक ताकत के दम पर एक शक्तिशाली राज्य का निर्माण किया । उसे अपनी ताकत बरकार रखने के लिए अपने प्रतिद्धंदियों को हाराना जरूरी था । गजनी का शासक योल्दोज ने उस वक्त पंजाब पर कब्जा जमा लिया था और अपनी क्षमता बढ़ा रहा था।ऐबक ने उसे हाराया और पंजाब को याल्दोज के चंगुल से आजाद कराया ।
एबक कुशल प्रशासक होने के साथ साथ कला,साहित्य और भवन निर्माण यानि स्थापत्य कला का शौकीन था।
उसने प्रसिद्ध कुतुब मीनार को बनाया मगर उसे पूरा नहीं कर सका । यह मिनार मशहूर सूफी संत कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी के नाम पर बनाया गया था। खास बात यह है कि दिल्ली में मौजूद इस मिनार को तीन राजाओं ने पूरा किया ऐबक ने इसे शुरू किया फिर बेसमेंट ही बना पाया था कि उसकी मौत पोलो खेलते हुए हो गयी। इसके बाद अगली तीन मंजिलों को एल्तुतमिष ने पूरा करावाया मगर वह भी अधूरा ही बना पाया और उसकी मौत हो गई । फिर उसे फिरोज शाह तुगलक ने आखिरी के दो मंजिले बनाए।
खैर बात कर रहें कुतुबुद्दीन एबक के भवन निर्माण की तो ऐबक ने इसके अलावा दो और प्रसिद्ध भवन बनाए
दिल्ली में मौजूद क्वावत उल ईस्लाम नाम की मस्जिद और ढाई दिन की झोपड़ा नाम से प्रसिद्ध मस्जिद जो आज अजमेर है ।
ऐबक में एक और खूबी थी - उसने लाख बख्श की उपाधि लोगों ने दी थी । क्योंकि वह बड़ा ही दयालु था और काफी दान करता था।
एबक के दरबार में हसन आजमी और मुबारक शाह नाम के दो प्रसिद्ध साहित्यकार भी थे ।
1210 ई में पोलो खेल खेलते हुए एबक की मौत घोड़े से गिरकर हो गई । इसक बाद फिर शुरू हुआ सत्ता का संर्घष।
आरम शाह जो ऐबक का बेटा था वह शासक बनना चाहता था और शासक बनाया भी गया था मगर नवाबों ने उसे बतौर शासक स्वीकार नहीं किया । तो ऐबक के दामाद को जो पहले एबक का गुलाम था उसे शासन करने के लिए बुलाया गया । उसका नाम था एल्तुतमिश । इस तरह दिल्ली को एक और गुलाम बतौर शासक मिला। एल्तुतमिश उस वक्त बदायुं का सुबेदार था।
एल्तुतमिश (1210 से 1236)
एल्तुतमिश ने दिल्ली को अपनी राजधानी बनाया ।शासक बनते ही उसके सामने कई समस्याएं आती गई जिसे वह काफी कुषलता से हल करता गया । वह भी अपने ससुर तथा मालिक की तरह कुषल प्रषासक था।
गजनी का यल्दोज तथा सिन्ध और मुल्तान के कुबाचा का समाना किया । उसने तुर्कीस साम्राज्य को गजनी और अन्य विदेषी शक्तियों से आजाद कराया ।
वह सैनिक कूटनीति में भी माहिर था एक जूना के प्रिंस का पीछा करते हुए चंगेज खा आ रहा था और प्रिंस ने एल्तुतमिश से शरण मांगी। एल्तुतमिश जानता था कि अगर उसने शरण दी तो चंगेज खां का भी सामना करना पड़ेगा जिससे काफी जानमाल की हानि होगी। अतः उसने प्रिंस को यह कहकर टाल दिया कि यहां की जलवायु उसके लिये उपयुक्त नहीं होगी।
इस प्रकार चंगेज खां के गुस्से से उसने अपने राज्य को बचा लिया।
प्रशासनिक सुधार
एल्तुतमिश ने कई प्रशासनिक सुधार किये ताकि दिल्ली सल्तनत को मजबूत बनाया जा सके । उसे चालिस तुर्की विद्धानों का एक दल बनाया जिसे चालिसा कहा जाता था। उसने प्रषासनिक सुधार के लिए पूरे प्रांत को कई हिस्सों में बांटा जिसे इक्ता कहा जाता था। उसे चांदी की मुद्रा (टंका ) और तांबा की मुद्रा (जीतल) भी चलाई ।उसके दरबार में मिन्हाज उस सिराज नाम का प्रसिद्ध लेखक हुआ करता था। मिन्हाज की लिखी बातों से एल्तुतमिश के शासन काल की जानकारी मिलती है। इसके अलावा उसके दरबार में रूहानी, उस्मानी नामक लेखक भी थे। शिया और हिन्दुओं के प्रति उसका व्यवहार बड़ा ही कठोर था।
एल्तुतमिश की बेटी रजिया एल्तुतमिश बाद दिल्ली की सुल्तान बनी