पंजाब में फसल कटाई के दौरान मनाए जाने वाले त्यौहार को बैसाखी कहते है। यह सिक्खों का एक पवित्र दिन होता है क्योंकि इसी दिन गुरु गोविंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। इस दिन को सिक्ख पंजाब में परंपरागत भांगड़ा नृत्य करते हैं। तथा महिलाएं गिद्धा नृत्य करते है।
यह त्यौहार बरसों से मनाया जा रहा है। मगर अंगे्रजों के शासन काल में 1919 कोकाला दिन भी कहते हैं।
पंजाब के जलियांवाला (Jallianwala )में जो नरसंहार हुआ इससे इस त्यौहार के साथ एक काला अध्याय जुड़ गया ।भारतीय इतिहास में यह जलियांवाला बाग नरसंहार के नाम से दर्ज है । इसे
पंजाब के जलियांवाला (Jallianwala )में जो नरसंहार हुआ इससे इस त्यौहार के साथ एक काला अध्याय जुड़ गया ।भारतीय इतिहास में यह जलियांवाला बाग नरसंहार के नाम से दर्ज है । इसे
इस नरसंहार में 2 महिने के बच्चे से लेकर 80 साल के बुढ़े तक मारे गए थे। इस बाग में 20,000 लोग जमा हुए थे और बिना चेतावनी के गोली बारी में 1000 से अधिक लोग मारे एक और 1500 लोग घायल हुए । इस घटना के सौ साल अब हो चुके हैं।
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जानते हैं कारण क्या था?
स्वाधीनता संग्राम को कुचलने के लिए अंग्रेजों ने 1919 को एक कानून बनाया जिसका नाम था रोलेक्ट एक्ट - इस कानून में यह प्रावधान था :-
- देश में किसी भी व्यक्ति को बिना किसी दलील के गिरफतार किया जा सकता था।
- इसमें गिरफतार व्यक्ति को वकील दलील की अनुमति नहीं होती थी।
- ऐसे लोगों को 2 साल तक बिना किसी मुकदमे के गिरफ्तार हो जाती थी।
- इसके साथ ही पुलिस को बिना किसी वारंट के किसी भी जगह की तलाषी का अधिकार मिल गया था।
- प्रेस की स्वतंत्रता पर अंकुश लग चुका था।
इस कानून का पूरे देश में विरोध होने लगा। जानते हैं कैसे घटनाक्रम ने मोड़ लिया । और काले अध्याय की शुरूआत हुई ।
मुख्य घटना क्रम
- गांधीजी ने 6 अप्रेल को राष्ट्रव्यापी सत्याग्रह का आवहान किया ।
- बाद में, कई प्रांतों विशेषकर पंजाब में बड़े पैमाने पर हिंसा के कारण इसे वापस ले लिया गया।
- रेल्वे पुल से गुजरते हुए 10 अप्रेल 1919 को लगभग 20 लोग मारे गए । इससे भीड़ नाराज हो गई और मिस शेरवुड नामक नन को भीड़ पीटा जिसे उसके ही किसी छात्र के पिता ने बचाया। इस घटना से उपजी अशान्ति पर लगाम लगाने के लिए ब्रिटिश ने सेना के जवानों को पंजाब भेजा।
- 13 अप्रेल 1919 की रविवार पूरे पंजाब में मार्शल लाॅ लागू कर दिया गया। और एक जगह पर चार लोगों से अधिक जमा होने पर पाबंदी लगा दी गई।
- इस घोषणा के बाद भी बैशाखी के जश्न के लिए अमृतसर के जलियांवाला बाग में लोगों की भीड़ इकट्ठा हो गई और यही वजह थी कि सार्वजनिक बाग में नरसंहार हुआ।
वह काला दिन
डायर 303 ली-एनफील्ड बोल्ट-एक्शन राइफलों और मशीनगनों से भरे गोरखा के अपने समूह के साथ वहां पहुंचा, चारों ओर से बगीचे को घेर लिया और बिना किसी पूर्व चेतावनी के भीड़ पर गोलीबारी शुरू कर दी। एकमात्र मकसद विद्रोह को दबाना था। 10 मिनट
(1,650 राउंड) तक निर्दोष भीड़ पर उसने गोलीबारी जारी रखी जब तक कि बंदूकों की गोलियां खत्म नहीं हो गई। इसके बाद उसने जानबूझकर घायलों को चिकित्सा सहायता देने के लिए कोई प्रयास नहीं किया। इसका समापन शाम 5.45 बजे के आसपास हुआ था।
जिन्हें सीधी गोलियां नहीं लगी वे भगदड़ की वजह से घायल हो गए और इलाज के अभाव में दम तोड़ दिया। सरकारी डॉक्टर लेफ्टिनेंट कर्नल स्मिथ ने घायलों का इलाज करने से इंकार कर दिया, । लोगों ने अगली सुबह मृतकों का सामूहिक अंतिम संस्कार किया ।
इस घटना के जिम्मेदार जनरल डायर की बड़ी आलोचना हुई उसे मजबूरन सेवानिवृत लेना पड़ा।
रविन्द्र नाथ टैगौर ने विरोध स्वरूप नाईट हुड की टाईटिल को त्याग दिया जिसे ब्रिटिष का्रउन ने असाधरण व्यक्तिगत उपलब्धि और सार्वजनिक सेवा के लिए दिया था।