कोरोना के विस्तार को लेकर पूरी दुनियाँ चितिंत है । एक तरफ तो कुछ राहत इस बात में है कि यह वायरस को समय रहते फैलने से रोकने के लिए सरकार ने 21 दिनों के लाॅक डाऊन की घोषणा की है । फिर उसे अब बढ़ा दिया है ।
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और इसका सख्ती से पालन कराने में सरकार कोई कसर नहीं छोड़ रही है। जाहिर है ऐसे में उन लोगों को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है जो लोग रोज कमाते और खाते थे उनकी रोजी रोटी भी बंद हो गई है। मिसाल के तौर पर ठेले और छोटे व्यापारी जिनकी आमदनी का साधन उनकी दुकान या ठेले थे। और वे लोग जो लोन लेकर अपना व्यवसाय चला रहें है।
ऐसे लोगों को लोन की किस्त पटाने का समय आ गया है उनके सामने दो समस्या आ गई है
- लोन कैसे पटाएं और
- व्यापार को पटरी पर कैसे लाएं
मिसाल के तौर पर जो बैंक से लोन लेकर गाड़ी फाइनेन्स कर अपना धंधा चलाने की सोच रहें थे।
ऐसे ही लोगों को कुछ राहत देने की गरज से बैंकों की गर्वनिंग बाॅडी आर बी आई यानि Reserve Bank of India ने सभी बैंको और लोन देने वाली संस्थाओं को अगले तीन महिने तक ऋण वसूली करने पर रोक लगा दिया है।
इससे कम से कम उन लोगों को सुकून मिलेगा जिन्होंने कर्ज लेकर या तो मकान बनाए हैं या गाड़ी खरीदी हैं ।
क्या होगा इनका ?
आर बी आई ने रेपो रेट और रिवर्स रेपों रेट भी कम कर दी है जिससे लोन किस्त में भी कमी आने की सम्भावना है। अब सवाल उठता है यह कैसे सम्भव हो सकेगा? लोन किस्त किस प्रकार कर होगी?
रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट का लोन किस्त से क्या सरोकार
इसे समझने के लिए रेपो रेट को समझना होगा । दरअसल हर बैंक आरबीआई से अपने खर्चे चलाने के लिए कर्ज लेती है और बैंक ब्याज समेत उस रकम को आरबीआई को वापस देना होता है - इसे ही रेपो रेट कहते हैं। और जब यह रेपो रेट कम होगा तो जाहिर है बैंक ग्राहक से भी कम वसूली करेगी जिसे उसने लोन पर दिया है।
अब रिवर्स रेपो रेट क्या है?
और जब बैंक अपना खर्च पूरा करने के बाद जो रकम बच जाती है उसे उसे रिर्जव बैंक को लौटा देती है -इसे रिवर्स रेपो रेट कहते है। दूसरे शब्दों में इसे समझते हैं , देश में कामकाज कर रहे बैंकों के पास जब दिन-भर के कामकाज के बाद रकम बची रह जाती है, तो उस रकम को भारतीय रिजर्व बैंक में रख देते हैं । इस रकम पर आरबीआई उन्हें ब्याज देता है। भारतीय रिजर्व बैंक इस रकम पर जिस दर से बैंकों को ब्याज देता है, उसे रिवर्स रेपो रेट कहते हैं। अब जानते है ये कम हो जाए तो आम आदमी को क्या फर्क पड़ता है?
Fortunately, हाल ही में रिर्जव बैंक ने कोरोना उथलपुथल को देखते हुए रेपो और रिवर्स रेपो रेट कम कर चुकी है ।
इसका असर क्या पड़ेगा?
- लोन पर किस्तें जो हम पटाते हैं उसका ब्याज में कमी आएगी।
- ये तभी सम्भव है जब रेपो रेट कम हो क्योंकि बैंक भी कम ब्याज में रिर्जव बैंक को उसका पैसा वापस कर रही है। तो वह लोन लेने वालों से भी कम में ब्याज में लोन देगी।
दूसरा मंहगाई पर लगाम लगेगी। ये तभी सम्भव है जब रिर्जव बैंक अपनी रिवर्स रेपो रेट पर ब्याज बड़ा दे क्योंकि ज्यादा ब्याज के लालच में बैंक कम खर्च करेगा और रिर्जव बैंको में ज्यादा पैसा लगाएगा।
अगर रिवर्स रेपो रेट भी कम हो तो बाजार में नगदी की मांग बढ़ेगी जाहिर है लोन का बंटवारा भी ज्यादा होगा। मगर इससे मंहगाई बढ़ने की आषंका रहती है।
जब बैंक और वित्तीय मसलों पर बात चली है तो कुछ और बिन्दुओं पर गौर करते हैं जिन्हें आप समाचार पत्रों में अक्सर पढ़ते होगें। जानते है वे क्या हैं ?
कैश रिर्जव रेशो:
रिर्जव बैंक ने भारत में कामकाज कर रहे बैंकों के लिए कुछ दिशा निर्देश हैं। बैंकिंग नियमों के अनुसार हर बैंक को अपने पास कुल कैश रिजर्व का एक निश्चित हिस्सा रिजर्व बैंक के पास रखना ही होता है । इसे कैश रिर्जव रेशो यानि (सीआरआर) कहते हैं। आरबीआई ने ये नियम इसलिए बनाए हैं, जिससे किसी भी बैंक में बहुत बड़ी संख्या में ग्राहकों को रकम निकालने की जरूरत पड़े तो बैंक पैसे देने से मना न कर सके।
कैश रिर्जव रेशो (सीआरआर का आप पर क्या प्रभाव पड़ता है?)
अगर सीआरआर बढ़ता है तो ज्यादा पैसा रिर्जव बैंक के पास रहेगा और ग्राहकों को देने के लिए कर्ज की रकम कम होगी जिससे ग्राहकों को कर्ज देने में बैंक असमर्थ हो जाएगा। अगर रिजर्व बैंक सीआरआर को घटाता है तो बाजार में नगदी ज्यादा आएगी । वास्तव में रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट में बदलाव की तुलना में सीआरआर में किए गए बदलाव से बाजार में नकदी की उपलब्धता पर ज्यादा वक्त में असर पड़ता है ।
एस.एल. आर. (स्टेचुअरी लिक्विडिटी रेश्यो )
इसे हिन्दी में वैधानिक तरलता अनुपात कहते हैं । दरअसल बैंकों के पास उपलब्ध जमा का वह हिस्सा होता है, जोकि उन्हें अपनी जमा पर लोन जारी करने के पहले अपने पास रख लेना जरूरी होता है।
यह आमतौर पर नकदी, स्वर्ण भंडार, सरकारी प्रतिभूतियों जैसे किसी भी रूप में हो सकता है । जब बैंक इस अनुपात को सुरक्षित रख लेते हैं, उसके बाद ही उन्हेें अपनी जमा पर लोन जारी करने की अनुमति होती है। एसएलआर का यह रेशो कितना होगा, इसका निर्णय रिजर्व बैंक करता है । भारत में एसएलआर की अधिकतम सीमा 40 फीसदी तक रह चुकी है। और रिजर्व बैंक को यह अधिकतम सीमा 40 फीसदी और न्यूनतम शुन्य फीसदी तक भी रखने का अधिकार है।
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ग्राहकों को क्या प्रभाव पड़ेगा।
एसएलआर से बैंकों के कर्ज देने की क्षमता नियंत्रित होती है। अगर कोई बैंक मुश्किल परिस्थिति में फंस जाता है तो रिजर्व बैंक एसएलआर की मदद से ग्राहकों के पैसे की कुछ हद तक भरपाई कर सकता है।