28 मार्च 2020 को सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने 80 के दशक में मनोरंजन को एक नया आयाम देने वाले टी.वी धारावाहिक का पुनः प्रसारण करने का फैसला लिया और नियत समय पर जब इस धारावाहिक की शुरूआत हुई । कुछ का मानना है कि कोरोना की वजह से हुए लाॅक डाऊन के मद्देनजर घर पर रह कर 80 के दशक के मशहूर धारावाहिक देख सकते हैं।
आखिर क्या खास था इस धारावाहिक में ।
सबसे पहली बात तो इसे पद्मश्री रामानन्द सागर ने निर्देशित किया था । रामानन्द सागर फिल्मी दुनियां की वह आईकोनिक हस्ती है जिन्हें बेहतरीन फिल्मे बनाने के लिए जाना जाता है।
Ramayan ke Raam Arun Govil |
जिस वक्त रामानन्द सागर ने रामायण को लेकर एक टीवी सीरियल बनाने की घोषणा की तो लगा वे शायद उतना बेतहर नहीं दे पाएंगे जितना वे फिल्मों में कर चुके थे और जब सिरियल बनकर तैयार हुआ तो फिर टीवी धारावाहिक में यह एक इतिहास बन गया ।
कहते है यह धारावाहिक इतना प्रसिद्ध हुआ कि इसके लिए संसद की कार्यवाही और भारतीय रेल की समयसारणी बदली गई थी । इसी बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह धारावाहिक कितना प्रसिद्ध था। इसी दर्षकों संख्या की बेतहाशा वृद्धि ने इसे लिम्का बुक वल्र्ड रिकार्ड में सबसे ज्यादा देखा जाना वाला धार्मिक सीरियल बना दिया । उस वक्त इसका प्रसारण 55 देशों में होता था और इसके 650 मिलियन दर्शक थे। यह उस वक्त की बात है जब आज की दौर की तरह अनगिनत टीवी चैनल्स का आगमन नहीं हुआ था। इसके अलावा भी जो उस दौर सिनेमा का काफी बोलबाला था। लोग बड़ा पर्दा और छोटा पर्दा में फर्क किया करते थे । रामानन्द सागर ने इस फर्क को मिटा दिया । जिसे बाद में अमिताभ बच्चन आगे बढ़ाया। कहने का तात्पर्य यह है कि फिल्म निर्माण से जुड़े लोग टीवी पर आने से गुरज करते थे , और दोनों का माध्यम अलग-अलग समझा जाता था। 25 जनवरी 1987 को ष्यह धारावाहिक टेलीविजन में पहली बार दिखाया गया और 31 जनवरी 1988 में को इसका आखिरी एपिसोड था।
कोरोना को लेकर जब लाॅकडाउन की बात कही जा रही है ऐसे में सरकार ने दूरदर्शन पर इसका पुनः प्रसारण किया है । यह काफी सराहनीय कदम है उस वक्त से लेकर आज तक एक नई पीड़ी आ चुकी है उसे भी इस धारावाहिक को देखने का अवसर मिलेगा।
कब और किसमें यह प्रसारण
एक नजर डालते हैं उन चैनल्स पर जिसमें एतिहासिक रामायण धारावाहिक का प्रसारण होगा
Time: 9am to 10 am
Second Episode 9pm to 10 pm.
Time: 9am to 10 am
Second Episode 9pm to 10 pm.
जीटीपीएल- 34 नम्बर
टाटा स्काई- 114
विडियोकाॅन -149
एयरटेल -148
डिष टीवी - 193, 4030
सन डायरेक्ट - 310
इंडिपेंनडेन्ट टीवी- 205
सिगन्ल डिजिटल - 171
इसी तरह एक और उस जमाने का मशहूर धारावाहिक महाभारत था, जिसे बी.आर.चोपडा़ ने रामायण के बाद बनाया और दूरदर्षन में यह धारावाहिक 2 अक्टूबर 1988 में शुरू हुआ और 24 जून 19990 तक चला ।
आप महाभारत इन जगहों पर देख सकते हैं ।
जीटीपीएल- 404
टाटा स्काई- 1194
विडियोकाॅन डीटीएच- 674
एअरटेल- 140
डीडी फ्री डिश- 5
डीश टीवी- 826
सन डायरेक्ट- 326
डेन डिजीटल- 149
रामायण के पहले दूरदर्षन पर ऐसे और भी धारावहिक थे जिसने मनोरंजन का एक इतिहास लिखा
जैसे धारावाहिक हम लोग मध्यमवर्गीय परिवार के संर्घष की कहानी
धारावाहिक बुनियाद 1947 के बाद विभाजन की पीड़ा भोग रहे परिवार की कहानी।
सर्कस नाम का धारावाहिक जिसमें शाहरूख खान थे, वे उन दिनों टीवी पर काम करते थे । उनका पहला सीरियल फौजी
था।
भारत मे टीवी 1959 में शुरू हुआ। तब इसे टेलीविजन इंडिया कहा जाता था। बहुत ही कम लोगों तक इसकी पहुंच थी। 1975 में इसे नया नाम मिला दूरदर्शन। तब तक ये दिल्ली, मुम्बई, चेन्नई और कोलकाता तक सीमित था, जब तक कि १९८२ में एशियाड खेलों का प्रसारण सम्पूर्ण देश मे होने लगा था। 1984 में 'बुनियाद' और 'हम लोग' की आशातीत सफलता ने टीवी की लोकप्रियता में और बढ़ोतरी की।
इधर रामानंद सागर उत्साह से रामायण की तैयारियां कर रहे थे। लेकिन टीवी में प्रवेश को उनके साथी आत्महत्या करने जैसा बता रहे थे। सिनेमा में अच्छी पोजिशन छोड़ टीवी में जाना आज भी फ़िल्म मेकर के लिए आत्महत्या जैसा ही है। रामानंद इन सबसे अविचलित अपने काम मे लगे रहे। उनके इस काम पर कोई पैसा लगाने को तैयार नहीं हुआ।
जैसे-तैसे वे अपना पहला सीरियल 'विक्रम और वेताल' लेकर आए। सीरियल बहुत सफल हुआ। हर आयुवर्ग के दर्शकों ने इसे सराहा। यहीं से टीवी में स्पेशल इफेक्ट्स दिखने लगे थे। विक्रम और वेताल को तो दूरदर्शन ने अनुमति दे दी थी लेकिन रामायण का कांसेप्ट न दूरदर्शन को अच्छा लगा, न तत्कालीन कांग्रेस सरकार को। यहां से रामानंद के जीवन का दुःखद अध्याय शुरू हुआ।
दूरदर्शन 'रामायण' दिखाने पर सहमत था किंतु तत्कालीन कांग्रेस सरकार इस पर आनाकानी कर रही थी। दूरदर्शन अधिकारियों ने जैसे-तैसे रामानंद सागर को स्लॉट देने की अनुमति सरकार से ले ली। ये सारे संस्मरण रामानंद जी के पुत्र प्रेम सागर ने एक किताब में लिखे थे। तो दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में रामायण को लेकर अंतर्विरोध देखने को मिल रहा था। सूचना एवं प्रसारण मंत्री बीएन गाडगिल को डर था कि ये धारावाहिक न केवल हिन्दुओं में गर्व की भावना को जन्म देगा अपितु तेज़ी से उभर रही भारतीय जनता पार्टी को भी इससे लाभ होगा।
इससे पहले रामानंद को अत्यंत कड़ा संघर्ष करना पड़ा था। वे दिल्ली के चक्कर लगाया करते कि दूरदर्शन उनको अनुमति दे दे लेकिन सरकारी घाघपन दूरदर्शन में भी व्याप्त था। घंटों वे मंडी हाउस में खड़े रहकर अपनी बारी का इंतज़ार करते। कभी वे अशोका होटल में रुक जाते, इस आस में कि कभी तो बुलावा आएगा। एक बार तो रामायण के संवादों को लेकर डीडी अधिकारियों ने उनको अपमानित किया।
1986 में श्री राम की कृपा हुई। अजित कुमार पांजा ने सूचना व प्रसारण का पदभार संभाला और रामायण की दूरदर्शन में एंट्री हो गई। 25 जनवरी 1987 को ये महाकाव्य डीडी पर शुरू हुआ। ये दूरदर्शन की यात्रा का महत्वपूर्ण बिंदु था। दूरदर्शन के दिन बदल गए। राम की कृपा से धारावाहिक ऐसा हिट हुआ कि रविवार की सुबह सड़कों पर स्वैच्छिक जनता कर्फ्यू लगने लगा।
इसके हर एपिसोड पर एक लाख का खर्च आता था, जो उस समय दूरदर्शन के लिए बहुत बड़ी रकम हुआ करती थी। राम बने अरुण गोविल और सीता बनी दीपिका चिखलिया की प्रसिद्धि फिल्मी कलाकारों के बराबर हो गई थी। दीपिका चिखलिया को सार्वजनिक जीवन मे कभी किसी ने हाय-हेलो नही किया। उनको सीता मानकर ही सम्मान दिया जाता था।
अब नटराज स्टूडियो साधुओं की आवाजाही का केंद्र बन गया था। रामानंद से मिलने कई साधु वहां आया करते। एक दिन कोई युवा साधु उनके पास आया। उन्होंने ध्यान दिया कि साधु का ओरा बहुत तेजस्वी है। साधु ने कहा वह हिमालय से अपने गुरु का संदेश लेकर आया है। तत्क्षण साधु की भाव-भंगिमाएं बदल गई। वह गरज कर बोला ' तुम किससे इतना डरते हो, अपना घमंड त्याग दो। तुम रामायण बना रहे हो, निर्भिक होकर बनाओ। तुम जैसे लोगों को जागरूकता के लिए चुना गया है। हिमालय के दिव्य लोक में भारत के लिए योजना तैयार हो रही है। अतिशीघ्र भारत विश्व का मुखिया बनेगा।'
आश्चर्य है कि रामानंद जी को अपने कार्य के लिए हिमालय के अज्ञात साधु का संदेश मिला। आज इतिहास पुनरावृत्ति कर रहा है। उस समय जनता स्वयं कर्फ्यू लगा देती थी, आज कोरोना ने लगवा दिया है। उस समय दस करोड़ लोग इसे देखते थे, कल इससे भी अधिक देखेंगे। उन करोड़ों की सामूहिक चेतना हिमालय के उन गुरु तक पुनः पहुंच सकेगी। शायद फिर कोई युवा साधु चला आए और हम कोरोना से लड़ रहे इस युद्ध मे विजयी बन कर उभरे। कल चले राम बाण, और कोरोना का वध हो।
था।
रामायण से पहले
कहानी 1976 में शुरू हुई। फ़िल्म निर्माता-निर्देशक रामानंद सागर अपनी फिल्म 'चरस' की शूटिंग के लिए स्विट्जरलैंड गए। एक शाम वे पब में बैठे और रेड वाइन ऑर्डर की। वेटर ने वाइन के साथ एक बड़ा सा लकड़ी का बॉक्स टेबल पर रख दिया। रामानंद ने कौतुहल से इस बॉक्स की ओर देखा। वेटर ने शटर हटाया और उसमें रखा टीवी ऑन किया। रामानंद चकित हो गए क्योंकि जीवन मे पहली बार उन्होंने रंगीन टीवी देखा था। इसके पांच मिनट बाद वे निर्णय ले चुके थे कि अब सिनेमा छोड़ देंगे और अब उनका उद्देश्य प्रभु राम, कृष्ण और माँ दुर्गा की कहानियों को टेलेविजन के माध्यम से लोगों को दिखाना होगा।भारत मे टीवी 1959 में शुरू हुआ। तब इसे टेलीविजन इंडिया कहा जाता था। बहुत ही कम लोगों तक इसकी पहुंच थी। 1975 में इसे नया नाम मिला दूरदर्शन। तब तक ये दिल्ली, मुम्बई, चेन्नई और कोलकाता तक सीमित था, जब तक कि १९८२ में एशियाड खेलों का प्रसारण सम्पूर्ण देश मे होने लगा था। 1984 में 'बुनियाद' और 'हम लोग' की आशातीत सफलता ने टीवी की लोकप्रियता में और बढ़ोतरी की।
इधर रामानंद सागर उत्साह से रामायण की तैयारियां कर रहे थे। लेकिन टीवी में प्रवेश को उनके साथी आत्महत्या करने जैसा बता रहे थे। सिनेमा में अच्छी पोजिशन छोड़ टीवी में जाना आज भी फ़िल्म मेकर के लिए आत्महत्या जैसा ही है। रामानंद इन सबसे अविचलित अपने काम मे लगे रहे। उनके इस काम पर कोई पैसा लगाने को तैयार नहीं हुआ।
जैसे-तैसे वे अपना पहला सीरियल 'विक्रम और वेताल' लेकर आए। सीरियल बहुत सफल हुआ। हर आयुवर्ग के दर्शकों ने इसे सराहा। यहीं से टीवी में स्पेशल इफेक्ट्स दिखने लगे थे। विक्रम और वेताल को तो दूरदर्शन ने अनुमति दे दी थी लेकिन रामायण का कांसेप्ट न दूरदर्शन को अच्छा लगा, न तत्कालीन कांग्रेस सरकार को। यहां से रामानंद के जीवन का दुःखद अध्याय शुरू हुआ।
दूरदर्शन 'रामायण' दिखाने पर सहमत था किंतु तत्कालीन कांग्रेस सरकार इस पर आनाकानी कर रही थी। दूरदर्शन अधिकारियों ने जैसे-तैसे रामानंद सागर को स्लॉट देने की अनुमति सरकार से ले ली। ये सारे संस्मरण रामानंद जी के पुत्र प्रेम सागर ने एक किताब में लिखे थे। तो दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में रामायण को लेकर अंतर्विरोध देखने को मिल रहा था। सूचना एवं प्रसारण मंत्री बीएन गाडगिल को डर था कि ये धारावाहिक न केवल हिन्दुओं में गर्व की भावना को जन्म देगा अपितु तेज़ी से उभर रही भारतीय जनता पार्टी को भी इससे लाभ होगा।
इससे पहले रामानंद को अत्यंत कड़ा संघर्ष करना पड़ा था। वे दिल्ली के चक्कर लगाया करते कि दूरदर्शन उनको अनुमति दे दे लेकिन सरकारी घाघपन दूरदर्शन में भी व्याप्त था। घंटों वे मंडी हाउस में खड़े रहकर अपनी बारी का इंतज़ार करते। कभी वे अशोका होटल में रुक जाते, इस आस में कि कभी तो बुलावा आएगा। एक बार तो रामायण के संवादों को लेकर डीडी अधिकारियों ने उनको अपमानित किया।
1986 में श्री राम की कृपा हुई। अजित कुमार पांजा ने सूचना व प्रसारण का पदभार संभाला और रामायण की दूरदर्शन में एंट्री हो गई। 25 जनवरी 1987 को ये महाकाव्य डीडी पर शुरू हुआ। ये दूरदर्शन की यात्रा का महत्वपूर्ण बिंदु था। दूरदर्शन के दिन बदल गए। राम की कृपा से धारावाहिक ऐसा हिट हुआ कि रविवार की सुबह सड़कों पर स्वैच्छिक जनता कर्फ्यू लगने लगा।
इसके हर एपिसोड पर एक लाख का खर्च आता था, जो उस समय दूरदर्शन के लिए बहुत बड़ी रकम हुआ करती थी। राम बने अरुण गोविल और सीता बनी दीपिका चिखलिया की प्रसिद्धि फिल्मी कलाकारों के बराबर हो गई थी। दीपिका चिखलिया को सार्वजनिक जीवन मे कभी किसी ने हाय-हेलो नही किया। उनको सीता मानकर ही सम्मान दिया जाता था।
अब नटराज स्टूडियो साधुओं की आवाजाही का केंद्र बन गया था। रामानंद से मिलने कई साधु वहां आया करते। एक दिन कोई युवा साधु उनके पास आया। उन्होंने ध्यान दिया कि साधु का ओरा बहुत तेजस्वी है। साधु ने कहा वह हिमालय से अपने गुरु का संदेश लेकर आया है। तत्क्षण साधु की भाव-भंगिमाएं बदल गई। वह गरज कर बोला ' तुम किससे इतना डरते हो, अपना घमंड त्याग दो। तुम रामायण बना रहे हो, निर्भिक होकर बनाओ। तुम जैसे लोगों को जागरूकता के लिए चुना गया है। हिमालय के दिव्य लोक में भारत के लिए योजना तैयार हो रही है। अतिशीघ्र भारत विश्व का मुखिया बनेगा।'
आश्चर्य है कि रामानंद जी को अपने कार्य के लिए हिमालय के अज्ञात साधु का संदेश मिला। आज इतिहास पुनरावृत्ति कर रहा है। उस समय जनता स्वयं कर्फ्यू लगा देती थी, आज कोरोना ने लगवा दिया है। उस समय दस करोड़ लोग इसे देखते थे, कल इससे भी अधिक देखेंगे। उन करोड़ों की सामूहिक चेतना हिमालय के उन गुरु तक पुनः पहुंच सकेगी। शायद फिर कोई युवा साधु चला आए और हम कोरोना से लड़ रहे इस युद्ध मे विजयी बन कर उभरे। कल चले राम बाण, और कोरोना का वध हो।