रोलेक्ट एक्ट, जलियां वाला बाग नरसंहार जैसी घटनाओं से गांधीजी को यकीन हो गया कि अंग्रेज सरकार से अब किसी भी तरह की उम्मीद करना व्यर्थ है। अतः नागपुर अधिवेशन में 4 सितम्बर 1920 को इस आंदोलन की शरूआत हुई ।
। यह चम्पारण आंदोलन के बाद दूसरा जन आंदोलन था जिसमें गांधी जी ने अपने सत्य और अहिंसा के बूते ब्रिटिश सरकार को किसी भी प्रकार से सहयोग न करने की अपील लोगों से की । उनसे आग्रह किया गया कि
- वे स्कूलो, कॉलेजो और न्यायालय न जाएँ तथा किसी भी प्रकार का टैक्स न चुकाएँ।
Gandhiji and Nehru संक्षेप में सभी को अंग्रेजी सरकार के साथ सारे ऐच्छिक संबंधो के तोड़ने को कहा गया । और इसका भारतीयों ने पालन भी किया । - गाँधी जी ने कहा कि यदि असहयोग का ठीक ढंग से पालन किया जाए तो भारत एक वर्ष के भीतर स्वराज प्राप्त कर लेगा।
- अपने संघर्ष का और विस्तार करते हुए उन्होंने खिलाफत आन्दोलन के साथ हाथ मिला लिए जो हाल ही में तुर्की शासक कमाल अतातुर्क द्वारा समाप्त किए गए सर्व-इस्लामवाद के प्रतीक खलीफा की पुनर्स्थापना की माँग कर रहा था।
ये हुआ असर
यह आंदोलन इतना प्रसिद्ध हुआ कि लोगों ने अपनी नौकरियां छोड़ दी । जो लोग ब्रिटिश सरकार के नुमाईदे थे उन्होने हर ब्रिटिश कानून के प्रति असहयोग करने की ठानी । यह पूरी तरह से अंहिसात्मक आंदोलन था । अचानक 1922 में उत्तर प्रदेश के चैारी चैारा में हुए हिंसक घटना के कारण गांधीजी ने स्वयं यह आंदोलन स्थगित कर दिया ।
चैारी चैारा दुर्घटना और असहयोग आंदोलन हुआ बंद
आन्दोलन समाप्ति का निर्णय
5 फरवरी 1922 को गोरखपुर जिले के चैारी चैारा नामक स्थान पर पुलिस ने जबरन एक जुलूस को रोकना चाहा, इसके फलस्वरूप जनता ने क्रोध में आकर थाने में आग लगा दी, जिसमें एक थानेदार एवं 21 सिपाहियों की मृत्यु हो गई। इस घटना से गांधी जी स्तब्ध रह गए। 12 फरवरी 1922 को बारदोली में हुई कांग्रेस की बैठक में असहयोग आन्दोलन को समाप्त करने के निर्णय के बारे में गांधी जी ने यंग इण्डिया में लिखा था कि, आन्दोलन को हिंसक होने से बचाने के लिए मैं हर एक अपमान, हर एक यातनापूर्ण बहिष्कार, यहाँ तक की मौत भी सहने को तैयार हूँ। अब गांधी जी ने रचनात्मक कार्यों पर जोर दिया।
उन्होंने जोर दिया कि, ‘किसी भी तरह की उत्तेजना को निहत्थे और एक तरह से भीड़ की दया पर निर्भर व्यक्तियों की घृणित हत्या के आधार पर उचित नहीं ठहराया जा सकता है’। परन्तु गांधी जी यहाँ यह भूल गये कि सन 1919 में बैसखी के दिन जलियान्वाला बाग में हजारो निहत्थे भारतीयो को इन्ही पुलिस वालो ने घेर कर मशीनगन से निर्ममता से भून दिया था फिर भी असहयोग आंदोलन के दौरान हजारों भारतीयों को जेल में डाल दिया गया।
ब्रिटिश कार्यवाही
स्वयं गाँधी जी को मार्च 1922 में राजद्रोह के आरोप में गिरफतार कर लिया गया। उन पर जाँच की कार्रवाही की अध्यक्षता करने वाले जज जस्टिस सी. एन. ब्रूमफील्ड ने उन्हें सजा सुनाते समय एक महत्वपूर्ण भाषण दिया। जज ने टिप्पणी की कि, इस तथ्य को नकारना असंभव होगा कि मैने आज तक जिनकी जाँच की है अथवा करूँगा आप उनसे भिन्न श्रेणी के हैं। इस तथ्य को नकारना असंभव होगा कि आपके लाखों देशवासियों की दृष्टि में आप एक महान देशभक्त और नेता हैं। यहाँ तक कि राजनीति में जो लोग आपसे भिन्न मत रखते हैं वे भी आपको उच्च आदर्शों और पवित्र जीवन वाले व्यक्ति के रूप में देखते हैं। चूँकि गाँधी जी ने कानून की अवहेलना की थी अतः उस न्याय पीठ के लिए गाँधी जी को 6 वर्षों की जेल की सजा सुनाया जाना आवश्यक था। लेकिन जज रूमफील्ड ने कहा कि ‘यदि भारत में घट रही घटनाओं की वजह से सरकार के लिए सजा के इन वर्षों में कमी और आपको मुक्त करना संभव हुआ तो इससे मुझसे ज्यादा कोई प्रसन्न नहीं होगा।
प्रिन्स ऑफ वेल्स का बहिष्कार
अप्रैल, 1921 में प्रिन्स ऑफ वेल्स के भारत आगमन पर उनका सर्वत्र काला झण्डा दिखाकर स्वागत किया गया। गांधी जी ने अली बन्धुओं की रिहाई न किये जाने के कारण प्रिन्स ऑफ वेल्स के भारत आगमन का बहिष्कार किया। 17 नवम्बर 1921 को जब प्रिन्स ऑफ वेल्स का बम्बई, वर्तमान मुम्बई आगमन हुआ, तो उनका स्वागत राष्ट्रव्यापी हड़ताल से हुआ। इसी बीच दिसम्बर, 1921 में अहमदाबाद में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ। यहाँ पर असहयोग आन्दोलन को तेज करने एवं सविनय अवज्ञा आन्दोलन चलाने की योजना बनी।
नेताओं के विचार
असहयोग आन्दोलन के स्थगन पर मोतीलाल नेहरू ने कहा कि, यदि कन्याकुमारी के एक गाँव ने अहिंसा का पालन नहीं किया, तो इसकी सजा हिमालय के एक गाँव को क्यों मिलनी चाहिए। अपनी प्रतिक्रिया में सुभाषचन्द्र बोस ने कहा, ठीक इस समय, जबकि जनता का उत्साह चरमोत्कर्ष पर था, वापस लौटने का आदेश देना राष्ट्रीय दुर्भाग्य से कम नहीं । आन्दोलन के स्थगित करने का प्रभाव गांधी जी की लोकप्रियता पर पड़ा। 13 मार्च 1922 को गांधी जी को गिरफ्तार किया गया तथा न्यायाधीश रूम फील्ड ने गांधी जी को असंतोष भड़काने के अपराध में 6 वर्ष की कैद की सजा सुनाई। स्वास्थ्य सम्बन्धी कारणों से उन्हें 5 फरवरी 1924 को रिहा कर दिया गया।
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असहयोग आंदोलन के अचानक वापस लिए जाने के कारण ही एक नए वर्ग का उदय हुआ जिन्हें क्रांतिकारी वर्ग कहा जाने लगा । भारतीय इतिहास में एक नया अध्याय जुड़ गया जिसमें चंद्रशेखर आज़ाद और भगतसिंह जैसे कांतिकारियों को उदय हुआ। वे हिंसा के बुते आजादी पाने चाहते थे। वे गांधीजी विचारों से असंतुष्ट थे इसीलिए नए संगठन Hindustan Socialist Republic Association की स्थापना हुई।