बस्तर के जो त्यौहार है वे सभी कई मायने में खास होते हैं चाहे वह त्यौहार दशहरा हो या होली। इनके मनाए जाने के करण भी ज्ञात करणों से जुदा होते है। मिसाल के तौर पर दशहरा को लें । दशहरे का त्यौहार सारे देश में राम की रावण पर विजय का प्रतीक होता है । मगर बस्तर में यह कुछ और ही कारणों से मनाया जाता है
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यही बात होली के लिए भी लागू होती है। अब बात करते हैं एक ऐसे ही त्यौहार के बारे में जो अन्य त्यौहारों से जुदा है वह आमा तिहार यानि आम का त्यौहार । यह तब मनाया जाता है
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किसी भी फसल को बस्तर में पूजा पाठ करके ही भोग करने का रिवाज है । जब धान की फसल पक कर तैयार हो जाती है तो नयाखानी का त्यौहार मनाया जाता है। इसी तरह आम के बौर आने से लेकर आम खाने तक जो त्यौहार मनाया जाता है उसे आमा तिहार यानि आम का त्यौहार कहा जाता है।
किस प्रकार मनाया जाता है आम का त्यौहार?
जो बस्तर आ चुके है उनको जानकारी है कि किस प्रकार बस्तर में प्रवेश करते ही उन्हें प्रत्येक गाँव में ग्रामीणों द्वारा रास्ते में रोका जाता है जो एक धार्मिक अनुष्ठान का हिस्सा होता है। और रोककर चंदा स्वरूप कुछ राषि ली जाती है । मगर राषि में किसी प्रकार का कोई बंधन नहीं होता यानि सामर्थनुसार जितना मिल जाए वह बहुत है। अमूमन एक रूपये से लेकर 10 रूपये तक होता है। और यह सिलसिला सुबह से शाम तक चलता है । और एक महिने के बाद प्राप्त राशि से एक पिकनिक की तरह मनाते हैं । इस दिन गाँव वाले आम की पूजा पाठ कर सामूहिक भोजन तैयार करते हैं फिर सभी मिल बाँट कर खाते हैं और खुशियाँ मनाते हैं ।
हल्बा समाज किस प्रकार मनाता है
आमा तिहार यानि आम के त्यौहार की खासियत है कि इस दिन शराब का सेवन वर्जित माना जाता है। हल्बा समाज के अध्यक्ष अर्जुन नाग बताते हैं कि हल्बा समाज के लोग आम के त्यौहार को एक धार्मिक अनुष्ठान के रूप में मनाते हैं ।
ग्राम ढोढरे पाल में रहने वाले ग्रामीण आम के त्यौहार के आखिरी दिन एक धार्मिक आयोजन करते हैं और पूजापाठ के बाद एक सभा आयोजित की जाती है। जिनमें समाज हित में अनेक फैसले लिये जाते है। जिन बातों का जिक्र मै करता है
- महिला शिक्षा
- वृक्षारोपण जिसमें आम के पौधे ज्यादातर होते हैं ।
- उच्च शिक्षा के लिए ग्रामीण लड़के लड़कियों को प्रेरित करना ताकि वे स्कूल के बाद भी अपनी पढ़ाई जारी रख सकें ।
बस्तर के आमा तिहार का मूल उद्देष्य केवल मौज मस्ती ही नहीं है इसका सामाजिक सरोकार भी है। हांलाकि नई पीड़ी इस बात से अंजान है। उसे आमा तिहार का मतलब पिकनिक और अन्य त्यौहारों की तरह मौजमस्ती करना है। कुछ समाजिक संगठन बस्तर की इस परंपरा को जीवित रखने के लिए प्रयासरत हैं। मिसाल के तौर पर हल्बा समाज के अध्यक्ष अर्जुन नाग पिछले 20 वर्षो से यह काम करते हैं ।