गोपाल कृष्ण गोखले के बुलावे पर गांधीजी अफ्रीका से भारत आए । यह बात 1915 की है। उन्होंने अपने राजीनितक जीवन की शुरूआत की इसके लिए सर्वप्रथम जो मंच मिला वह गोखले क वजह से ही मिला गोखले ने राजकुमार शुक्ल नामक एक सम्पन्न किसान से उनका परिचय करवाया। राजकुमार शुक्ल चम्पारण में एक किसान थे। जो वहां के अन्य किसानों की तरह अंग्रेजों के जुल्म के शिकार थे। राजकुमार ने इस समस्या के समाधान के लिए गोखले से सम्पर्क किया और गोखले ने गांधीजी से उनकी भेंट करा दी।
क्या था मामला:
चंपारण बिहार के पश्चिमोत्तर इलाके में आता है । इसकी सीमाएं नेपाल से सटती हैं । यहां पर उस समय अंग्रेजों ने व्यवस्था कर रखी थी कि हर बीघे में तीन कट्ठे जमीन पर नील की खेती किसानों को करनी ही होगी। पूरे देश में बंगाल के अलावा यहीं पर नील की खेती होती थी। इसके किसानों को इस बेवजह की मेहनत के बदले में कुछ भी नहीं मिलता था। उस पर उन पर 42 तरह के अजीब-से कर डाले गए थे।
Gandhiji in Champaran |
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चम्पारन के मामले में गांधीजी का योगदान:-
महात्मा गांधी ने सक्षम वकीलों के साथ चंपारण जिले के लोगों को संगठित किया, उन्होंने जनता को शिक्षित करने में सक्रिय भूमिका निभाई और साथ ही उन्हें आत्मनिर्भर आजीविका के विभिन्न तरीकों को अपनाकर आर्थिक रूप से मजबूत बनना सिखाया। यह आंदोलन न केवल ब्रिटिश हुकूमत द्वारा नील की खेती के फरमान को रद्द करने में सफल साबित हुआ बल्कि महात्मा गांधी के सत्याग्रह वाले असरदार तरीके के साथ भारत के पहले ऐतिहासिक नागरिक अवज्ञा आंदोलन के तौर पर भी सफल साबित हुआ। फांसीसियों का पलड़ा प्रथम विष्व युद्ध में कमजोर होने के चलते उनके सिन्थेटिक कपड़ों की मांग कम हो गई थी। और नील का प्रयोग कपड़ों की रंगाई के लिए किया जाता था। तो अंग्रेजों ने चंपारण के पट्टेदार किसानों को जबरन बड़े पैमाने पर नील की खेती करने का फरमान सुनाया था।
देश को राजेंद्र प्रसाद, आचार्य कृपलानी, मजहरूल हक, ब्रजकिशोर प्रसाद जैसी महान विभूतियां भी इसी आंदोलन से मिलीं. इन तथ्यों से समझा जा सकता है कि चंपारण आंदोलन देश के राजनीतिक इतिहास में कितना महत्वपूर्ण है. इस आंदोलन से ही देश को नया नेता और नई तरह की राजनीति मिलने का भरोसा पैदा हुआ । गांधीजी ने भी अफ्रीका में आजमाए सत्याग्रह का यहाँ प्रयोग करने का अवसर मिला ।
परिणाम
यह आंदोलन न केवल ब्रिटिश हुकूमत द्वारा नील की खेती के फरमान को रद्द करने में सफल साबित हुआ बल्कि महात्मा गांधी के सत्याग्रह वाले असरदार तरीके के साथ भारत के पहले ऐतिहासिक नागरिक अवज्ञा आंदोलन के तौर पर भी सफल साबित हुआ। चम्पारण आंदोलन वह आंदालन था जिसमें गांधी अफ्रीका में किए गए सत्याग्रह के प्रयोग का खुला अवसर दिया । महात्मा गांधी ने सक्षम वकीलों के साथ चंपारण जिले के लोगों को संगठित किया, उन्होंने जनता को शिक्षित करने में सक्रिय भूमिका निभाई और साथ ही उन्हें आत्मनिर्भर आजीविका के विभिन्न तरीकों को अपनाकर आर्थिक रूप से मजबूत बनना सिखाया।
महात्मा गांधी के लिए चंपारण आंदोलन का मुख्य केंद्र चंपारण के किसानों की दुर्दशा को दूर करने का था।
यहां उन्हें राजकुमार शुक्ल जैसे कई किसानों का भरपूर सहयोग मिला। पीड़ित किसानों के बयानों को कलमबद्ध किया गया। बिना कांग्रेस का प्रत्यक्ष साथ लिए हुए यह लड़ाई अहिंसक तरीके से लड़ी गई। इसकी वहां के अखबारों में भरपूर चर्चा हुई जिससे आंदोलन को जनता का खूब साथ मिला। इसका परिणाम यह हुआ कि अंग्रेजी सरकार को झुकना पड़ा। इस तरह यहां पिछले 135 सालों से चली आ रही नील की खेती धीरे-धीरे बंद हो गई । साथ ही नील की वजह से किसानों का शोषण भी हमेशा के लिए खत्म हो गया।
चंपारन के इस गांधी अभियान से अंग्रेज सरकार परेशान हो उठी। सारे भारत का ध्यान अब चंपारन पर था। सरकार ने मजबूर होकर एक जाँच आयोग नियुक्त किया, गांधीजी को भी इसका सदस्य बनाया गया।। परिणाम सामने था। कानून बनाकर सभी गलत प्रथाओं को समाप्त कर दिया गया। जमींदार के लाभ के लिए नील की खेती करने वाले किसान अब अपने जमीन के मालिक बने। गांधीजी ने भारत में सत्याग्रह की पहली विजय का शंख फूँका। चम्पारन ही भारत में सत्याग्रह की जन्म स्थली बना।
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