कोरोना के विस्तार मद्देनजर छत्तीसगढ़ में धारा 144 लगा दी गई है।
और स्कूल,कालेज, रेस्तारां, और वे सभी पब्लिक प्लेस जहाँ लोगों की भीड़ जमा होने की गुंजाईश है बंद कर दी गई है। जानिए क्या है कोरोना
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कोरोना वायरस से कैसे बचें?
कोरोना के विस्तार के दौरान पूरे क्षेत्र में धारा 144 लगा दी गई है
जानते हैं क्या है धारा 144 ?
कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर यानी सीआरपीसी के धारा 144 के तहत जिले में मौजूद डीएम, एसडीएम या एग्जिक्यूटिव मजिस्ट्रेट को यह अधिकार मिलता है कि वो कानून व्यवस्था अगर बिगड़ती तो पर राज्य सरकार की ओर से एक आदेश जारी कर अपने क्षेत्र में इसे लागू कर सकते हैं। कहने का तात्पर्य है कि जब ऐसा प्रतीत होता है कि लोगों की भीड़ कानून व्यवस्था के लिए चुनौती बन सकती है या कोई गड़बड़ी की आशंका हो सकती है तो संविधान की धारा 144 का प्रयोग किया जा सकता है।
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कब तक यह धारा किसी क्षेत्र में रह सकती है ?
प्रावधान के तहत इसे दो महिने से अधिक समय तक लागू नहीं किया जा सकता है। मगर राज्य सरकार यानि मुख्यमंत्री को ये अधिकार होता है कि इसकी वैधता को अधिकतम छह महीने तक बढ़ा सकते हैं । और जब स्थिति सामान्य हो जाती है कि किसी भी समय इसे वापस लिया जा सकता है।
इसके तहत क्या गैर कानूनी होता है?
- सार्वजनिक सभाएं,
- सार्वजनिक बैठकें
- या रैलियां आयोजित करने पर पूर्ण प्रतिबंध होता है,
- शैक्षणिक संस्थाएं भी बंद रखे जाते हैं।
कुल मिलाकर देखें तो इसे लागू करने का उद्देश्य होता है लोगों को एक जगह सभा, बैठक करने से रोकना वह भी उस वक्त जब किसी उपद्रव या गड़बड़ी की आशंका बनी हो। धारा 144 अधिकारियों को इंटरनेट एक्सेस को ब्लॉक करने का अधिकार देती है। कभी-कभी एक व्यक्ति की मौजूदगी भी क्षेत्र के लिए नुकसान साबित हो तो उसे भी धारा 144 के तहत गिरफतार किया जा सकता है।
धारा 144 लागू होने पर प्रशासन के पास अधिकार
धारा 144 लागू होने पर मजिस्ट्रेट किसी व्यक्ति को किसी खास कार्य से रोक सकते हैं, कोई खास निर्देश दे सकते हैं। आमतौर पर धारा 144 लागू होने पर लोगों के मूवमेंट पर रोक लगा दी जाती है। किसी भी तरह के हथियार रखने या फिर गैरकानूनी तरीके से एक जगह पर इकट्ठा होने की मनाही होती है।
राज्य सरकार चाहे तो धारा 144 को 2 महीने तक लगाए रख सकती है । हालांकि ये 6 महीने से ज्यादा की अवधि तक लगाए नहीं रखा जा सकता।
प्रशासन की तैयारी
धारा 144 लागू करने से पहले प्रशासन को अपने आदेश में बहुत ही स्पष्ट शब्दों में यह बताना होता है कि सार्वजनिक शांति और अनुशासन को क्या ख़तरा था, जिसकी वजह से निषेधाज्ञा लागू की गई. तभी वो लोगों पर प्रतिबंध लगा सकते हैं।
सजा का प्रावधान
गैर कानूनी तरीके से जमा होने वाले किसी भी व्यक्ति के खिलाफ दंगे में शामिल होने के लिए मामला दर्ज किया जा सकता है। इसके लिए अधिकतम तीन साल कैद की सजा हो सकती है।
विवाद
जानकारों के अनुसार ब्रिटिश भारत में वर्ष 1939 के दौरान इस कानून को पहली बार चुनौती दी गई थी। और फिर आज़ादी के बाद में 1961, 1967 और 1970 में इस क़ानून को कोर्ट में चुनौती दी जा चुकी है । लेकिन हमेशा ही इस तर्क को आगे रखा गया कि जिस समाज में पब्लिक ऑर्डर नहीं होगा, वहाँ लोकतंत्र की रखवाली कैसे की जाएगी?
धारा-144 और कर्फ्यू के बीच फर्क
धारा 144 का बड़ा रूप है कर्फ्यू। कर्फ्यू बहुत ही खराब हालत में लगाया जाता है। कर्फ्यू के आदेश, किसी भी स्थान या शहर के हालात ज्यादा बिगड़ने पर दिए जाते हैं । इसमें लोगों को एक विशेष समय या अवधि के लिए घर में ही रहना होता है। ऐसा माना जाता है कि यह किसी भी प्रकार की हिंसक स्थिति को संभालने में काफी मददगार साबित हो सकता है। वहीं हम आपको बता दें कि कर्फ्यू का आदेश एक विशिष्ट समूह के लिए या फिर आम जनता के लिए हो सकता है। कर्फ्यू के दौरान पुलिस की पूर्व स्वीकृति के बिना किसी भी बाहरी गतिविधियों को प्रतिबंधित किया जाता है । केवल आवश्यक सेवाओं की अनुमति होती है, जैसे रोज मर्रा की जरूरतों के लिए कुछ समय तक बाजार का खुलना लेकिन स्कूलों को बंद रहने का आदेश दिया जाता है।
कर्फ्यू लगाने से पहले धारा 144 लगाई जाती है और एक तय समय सीमा में आपको अपने घर पहुंचना होता है । कर्फ्यू भी जिला मजिस्ट्रेट की ओर से जारी किया गया एक आदेश ही होता है। इस समय यातायात पर पूर्ण रूप से भी प्रतिबंध होता है। ऐसा कहना गलत नहीं होगा कि कर्फ्यू धारा 144 का बढ़ा हुआ रुप है।