विनोबा भावे Vinobha Bhave का मूल नाम विनायक नरहरि भावे था उनका जन्म 11 सिंतबर 1895. गागोदे (जि. रायगड). में हुआ। महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र में एक गांव है, गागोदा. उनके पिता यहां के चितपावन ब्राह्मण थे उनका नाम था- नरहरि भावे. गणित के प्रेमी और वैज्ञानिक सूझबूझ वाले. रसायन विज्ञान में उनकी रुचि थी। उन दिनों रंगों को बाहर से आयात करना पड़ता था। नरहरि भावे रात-दिन रंगों की खोज में लगे रहते.
Vinobha Bhave |
सात्विक वातावरण में 11 सितंबर 1895 को विनोबा का जन्म हुआ। उनका बचपन का नाम था विनायक. मां उन्हें प्यार से विन्या कहकर बुलातीं. विनोबा के अलावा रुक्मिणी बाई के दो और बेटे थेरू वाल्कोबा और शिवाजी. विनायक से छोटे वाल्कोबा. शिवाजी सबसे छोटे. विनोबा नाम गांधी जी ने दिया था। महाराष्ट्र में नाम के पीछे ‘बा’ लगाने का जो चलन है, उसके अनुसार. तुकोबा, विठोबा और विनोबा.
भूदान आंदोलन:
Vinobha Bhave का भूदान आंदोलन का विचार 1951 में जन्मा। जब वह आन्ध्र प्रदेश के गाँवों में भ्रमण कर रहे थे, भूमिहीन अस्पृश्य लोगों या हरिजनों के एक समूह के लिए जमीन मुहैया कराने की अपील के जवाब में एक जमींदार ने उन्हें एक एकड़ जमीन देने का प्रस्ताव किया। इसके बाद वह गाँव-गाँव घूमकर भूमिहीन लोगों के लिए भूमि का दान करने की अपील करने लगे और उन्होंने इस दान को गांधीजी के अहिंसा के सिद्धान्त से संबंधित कार्य बताया। भावे के अनुसार, यह भूमि सुधार कार्यक्रम हृदय परिवर्तन के तहत होना चाहिए न कि इस जमीन के बँटवारे से बड़े स्तर पर होने वाली कृषि के तार्किक कार्यक्रमों में अवरोध आएगा, लेकिन भावे ने घोषणा की कि वह हृदय के बँटवारे की तुलना में जमीन के बँटवारे को ज्यादा पसंद करते हैं। हालांकि बाद में उन्होंने लोगों को श्ग्रामदानश् के लिए प्रोत्साहित किया, जिसमें ग्रामीण लोग अपनी भूमि को एक साथ मिलाने के बाद उसे सहकारी प्रणाली के अंतर्गत पुनर्गठित करते।
Vinobha Bhave के विचार:
- मनुष्य जितना ज्ञान में घुल गया हो उतना ही कर्म के रंग में रंग जाता है।
- जिस राष्ट्र में चरित्रशीलता नहीं है उसमें कोई योजना काम नहीं कर सकती।
- प्रतिभा का अर्थ है बुद्धि में नई कोपलें फूटते रहना। नई कल्पना, नया उत्साह, नई खोज और नई स्फूर्ति प्रतिभा के लक्षण हैं।
- जबतक कष्ट सहने की तैयारी नहीं होती तब तक लाभ दिखाई नहीं देता। लाभ की इमारत कष्ट की धूप में ही बनती है।
- हिन्दुस्तान का आदमी बैल तो पाना चाहता है लेकिन गाय की सेवा करना नहीं चाहता। वह उसे धार्मिक दृष्टि से पूजन का स्वांग रचता है लेकिन दूध के लिये तो भैंस की ही कद्र करता है। हिन्दुस्तान के लोग चाहते हैं कि उनकी माता तो रहे भैंस और पिता हो बैल। योजना तो ठीक है लेकिन वह भगवान को मंजूर नहीं है।
- सिर्फ धन कम रहने से कोई गरीब नहीं होता, यदि कोई व्यक्ति धनवान है और इसकी इच्छाएं ढेरों हैं तो वही सबसे गरीब है।
- हिन्दुस्तान की एकता के लिये हिन्दी भाषा जितना काम देगी, उससे बहुत अधिक काम देवनागरी लिपि दे सकती है।तगड़े और स्वस्थ व्यक्ति को भीख देना, दान करना अन्याय है। कर्महीन मनुष्य भिक्षा के दान का अधिकारी नहीं हो सकता।
- संघर्ष और उथल पुथल के बिना जीवन बिल्कुल नीरस बन कर रह जाता है। इसलिए जीवन में आने वाली विषमताओं को सह लेना ही समझदारी है।
- भविष्य में स्त्रियों के हाथ में समाज का अंकुश आने वाला है। उसके लिए स्त्रियों को तैयार होना पड़ेगा। स्त्रियों का उद्धार तभी होगा, जब स्त्रियाँ जागेंगी और स्त्रियों में शंकराचार्य जैसी कोई निष्ठावान स्त्री होगी।
- अभिमान कई तरह के होते हैं, पर मुझे अभिमान नहीं है, ऐसा भास होने जैसा भयानक अभिमान दूसरा नहीं है.
- प्रतिभा का अर्थ है बुद्धि में नयी कोंपलें फूटते रहना. नयी कल्पना, नया उत्साह, नयी खोज और नयी स्फूर्ति प्रतिभा के लक्षण हैं.
- अनुशासन, लक्ष्यों और उपलब्धि के बीच का सेतु है. यकीन मानिए ज्ञान की अपेक्षा अज्ञान ज्यादा आत्मविश्वास पैदा करता है.
- जब हम किसी नयी परियोजना पर विचार करते हैं तो हम बड़े गौर से उसका अध्ययन करते हैं. केवल सतह मात्र का नहीं, बल्कि उसके हर एक पहलू का. प्रतिभा का अर्थ है बुद्धि में नई कोपलें फूटते रहना नई कल्पना, नया उत्साह, नई खोज और नई स्फूर्ति प्रतिभा के लक्षण हैं
- हिन्दुस्तान की एकता के लिये हिन्दी भाषा जितना काम देगी, उससे बहुत अधिक काम देवनागरी लिपि दे सकती है
- भविष्य में स्त्रियों के हाथ में समाज का अंकुश आने वाला है उसके लिए स्त्रियों को तैयार होना पड़ेगा स्त्रियों का उद्धार तभी होगा, जब स्त्रियाँ जागेंगी और स्त्रियों में शंकराचार्य जैसी कोई निष्ठावान स्त्री होगी
आखिरी पल
नवंबर 1982 में जब उन्हें लगा कि उनकी मृत्यु नजदीक है तो उन्होंने खाना-पीना छोड़ दिया जिसके परिणामस्वरूप 15 नवम्बर, 1982 को उनकी मृत्यु हो गई. उन्होंने मौत का जो रास्ता तय किया था उसे प्रायोपवेश कहते हैं जिसके अंतर्गत इंसान खाना-पीना छोड़ अपना जीवन त्याग देता है. गांधी जी को अपना मार्गदर्शक समझने वाले विनोबा भावे ने समाज में जन-जागृति लाने के लिए कई महत्वपूर्ण और सफल प्रयास किए. उनके सम्मान में उनके निधन के पश्चात हजारीबाग विश्वविद्यालय का नाम विनोबा भावे विश्वविद्यालय रखा गया.