बस्तर के मोती
हमारे यहाँ प्रमुख व्यवसाय खेती है और बस्तर में रहने वाली आबादी कृषि पर ही आश्रित है। खेती में मुख्यतः धान और मौसमी सब्जियों का चलन रहा है। मगर कुछ संस्थाएं आई और अन्य
सब्जियों के उत्पादन में भी नए-नए प्रयोग करती गई । पिछले दिनों अपने ब्लाॅग में मैने बस्तर जिले में मशरूम के बारे में चर्चा की थी जो एक अभिनव प्रयास था। बकावण्ड ब्लाॅक में जाकर जिस प्रकार परम्परागत तरीके से मषरूम का उत्पादन किया जा रहा है उसकी मैने विस्तृत चर्चा की थीनीचे दिए लिंक पर अवश्य क्लिक कीजिए !
फिर मेरी मुलाकात साफ्टवेयर नामक संस्था के प्रमुख से हुई । जिनके प्रयासों ने पिछले दिनों News Papers में काफी सुर्खियां बटोरी है । आखिर क्यों न हों ? संस्था ने बस्तर में मोती उत्पादन को सफलता पूर्वक अंजाम दिया है। मोती यानि Pearls एक समय में केवल समुद्र में हुआ करता था और इसके लिए जो आबोहवा की जरूरत होती थी वे समुद्री वातावरण में ही सम्भव था। मगर यह अब यह बस्तर जिले में भी सम्भव है। कैसे ?
जानते हैं पहले साफ्ट वेयर संस्था के बारे में
यह संस्था 2009 से स्वसहायता समूहों के माध्यम से कृषि और विकास कार्यो के लिए कार्य कर रही है। निदेशक मोनिका श्रीधर महिलओं को स्वावलम्बी बनाने के लिए समूह की महिलाओं को बस्तर अंचल में रोजगारोन्मुखी प्रशिक्षण दे रहीं है।
और इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए मोतियों के उत्पादन को चुना गया । फिलहाल मोतियों के उत्पादन का प्रयोग सफल रहा है और जैसा की उन्होने बताया कि उत्तम क्वालिटी की मोति अब बस्तर में भी सम्भव हो सकती है।
जानते हैं कैसे बनती है मोती?
इससे पहले यह जानना जरूरी है कि कौन-कौन सी सीपियों की वे प्रजातियां हैं जो मोती निर्माण करती है ?
मोलस्क नामक जन्तु ही मोतियों का निर्माण करते है। पिनकाटाडा नामक group है जो मोलस्क प्रजाति में आता है और यह मोतियों का निर्माण करता है।
जो खारे पानी में मिलते है मगर मोलस्क जन्तु एक पूरी प्रजाति समूह है इसके अन्तर्गत
Pearl in Bastar |
लगभग 50 से अधिक सीपियों की प्रजातियां होती है जो मोति बनाने का कार्य प्राकृतिक रूप से करती हैं इनमें प्रमुख है
- पिनकाटाडा मैक्ज़िमा
- पिनकाटाडा मार्गरिटेफेरा
- पिनकटाडा एल्बिनो
पहले मोतियां केवल समुद्रों में ही पायी जाती थी मगर इसकी खेती के विस्तार होने की वजह से अब यह तालाबों और पोखरों में भी मिल जाती है । बस्तर में तालाबों के जरिए ही इसका उत्पादन सम्भव हो पाया है । और सीपियां भी बस्तर की ही है जो विभिन्न पोखरों और तालाबों में मिलती है।
मोतियां बनती कैसे है ?
जब सीप के अंदर संयोगवश पत्थर या रेत का कण अंदर चला जाता है तो सीप नेक्रे (Nacre)नामक पदार्थ निकालती है। यह कार्य अपनी सुरक्षा के लिए सीप करती है इस प्रकिया में सीप के शरीर और रेत के कण के बीच एक कवच बन जाता है जो लम्बे अंतराल के बाद मोती का रूप ले लेता है। अपनी सुरक्षा के लिए निकाला गया नेक्रे मोती का रूप ले लेता है।
यह प्रकिया पूरी तरह प्राकृतिक होती है मगर समय के साथ इस प्रकिया को कृत्रिम तरीके से अंजाम दिया जा रहा है
जानते है बस्तर में साफ्टवेयर संस्था ने कैसे इसे सम्भव बनाया।
बस्तर के तालाबों और पोखरों से सीप लिया गया फिर उसे उसके कवच को ढीला करने की गरज से लगभग दो दिनों तक पानी में खुला छोड़ा गया ।
फिर उन सीपियों का Operation दो से तीन एमएम का छेद किया जाता है फिर रेत के कण अंदर डाले गए। और नायलोन बैग में भर के उन सीपियों को एक साल आठ महिनों के लिए तालाब में छोड़ दिया गया ताकि सीप नेक्रे (Nacre) निकाल सके और 20 Months के बाद उन सीपियांे का पुनः आपरेषन किया गया तो अंदर उम्दा क्वालिटि की मोति मिले। जिसे बाजार में परीक्षण के बाद उत्तम दर्जे का पाया गया।
Pearl in Bastar by Software Society |
बहरहाल, संस्था इसे बस्तर में एक रोजगार मूलक कार्य के तौर पर देख रही है और लोगों को मोतियों के उत्पादन के लिए प्ररित कर रही है। आदिवासी महिलाओं को स्वालम्बी बनाने के दिशा में एक अभिनव प्रयास है।
500 वर्ग फीट के तालाब में 100 सीपियों का पालन सम्भव है।
मोतियों के उत्पादन में अगर आप गंभीर हैं तो आपको इन चरणों का पालन करना होगा
इसमें छह प्रमुख चरण होते हैं-
- सीपों को इकट्ठा करना,
- इस्तेमाल से पहले उन्हें अनुकूल बनाना,
- सर्जरी, देखभाल,
- तालाब में उपजाना और
- मोतियों का उत्पादन।
इसके लिए संस्था लगातार प्रयासरत है कि किसी तरह यह प्रत्येक घरों में हो जाय तो मोतियों के नाम से भी बस्तर जाना जाएगा।