भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के आज 138 साल पूरे हो गए हैं। आज के दिन यानि 28 दिसंबर 1885 को बनी । आइए जानते हैं देश की सत्ता पर सबसे लंबे समय तक काबिज रहने वाली कांग्रेस पार्टी का इतिहास? कैसे अंग्रेज अधिकारी द्वारा बनाई गई एक पार्टी एक समय के बाद गांधी परिवार के लिए पहचानी जाने लगी।
किसने रचना की इस पार्टी की
स्कॉटलैंड निवासी ऐलन ओक्टोवियन ह्यूम ने बनाई थी पार्टी । और कांग्रेस का प्रारंभिक उद्देष्य तो यही था कि षिक्षित भारतीयों सरकार के समक्ष अपनी बात रख सकें।
भारतीय लोगों का एक वर्ग जो अंग्रेजी शिक्षा और कामकाज से वाकिफ थे वे भारत में लोगों को British कामकाज को आसानी से समझा सकते थे। ये तो प्रारंभिक उद्देश्य ही था मगर बाद में 1930 को लाहौर अधिवेशन में कांग्रेस की मांग पूर्ण स्वराज लेने की हुई । जिसमें British का कोई दखल न हो।
कौन कौन थे कांग्रेस के नए संगठन में
कांग्रेस पार्टी की स्थापना अवकाश प्राप्त आईसीएस अधिकारी स्कॉटलैंड निवासी ऐलन ओक्टोवियन ह्यूम (एओ ह्यूम) ने थियोसोफिकल सोसायटी के मात्र 72 राजनीतिक कार्यकर्ताओं के सहयोग से की थी। इसमें सामाजिक कार्यकर्ता, पत्रकार और वकीलों का दल भी शामिल था। 28 दिसंबर 1885 को कांग्रेस का पहला चार दिवसीय अधिवेशन मुंबई (तब बॉम्बे) के गोकुलदास तेजपाल संस्कृत कॉलेज में हुआ था, जिसके अध्यक्ष तब के बैरिस्टर व्योमेश चंद्र बनर्जी थे। पार्टी का दूसरा अधिवेशन ठीक एक साल बाद 27 दिसंबर 1886 को कोलकाता में दादाभाई नैरोजी की अध्यक्षता में हुआ था।
कांग्रेस गठन से पहले उस वक्त के न्याय मूर्ति रानाडे, दादा भाई नौरोजी, फिरोजशाह मेहता, जी0 सुब्रहमण्यम अय्यर और सुरेन्द्रनाथ बनर्जी जैसें नेताओं ने इसलिए हयूम से सहयोग लिया, क्योंकि वह शुरूआत में ही सरकार से दुश्मनी नहीं मोल लेना चाहते थे। उनका सोचना था कि अगर कांग्रेस जैसे सरकार विरोधी संगठन का मुख्य संगठनकर्ता, ऐसा आदमी हो जो अवकाश प्राप्त ब्रिटिश अधिकारी हो तो इस संगठन के प्रति ब्रिटिश सरकार को संदेह नहीं होगा। इस कारण कांग्रेस पर सरकारी हमले की गुंजाइश कम होगी। इसी के बाद एओ ह्यूम की मदद से इसकी स्थापना की गई।
महात्मा गांधी, मोतीलाल नेहरू, मदन मोहन मालवीय, सुभाष चंद्र बोस जैसे क्रांतिकारियों से लेकर अब 59 लोग पार्टी के अध्यक्ष पद की कमान संभाल चुके हैं।1939 में सुभाष चंद्र बोस ने कांग्रेस अध्यक्ष पद को लेकर पनपे पहले विवाद के बाद इस्तीफा दे दिया था।
वो घटना सूरत अधिवेशन की
सूरत अधिवेशन 1907 में कांग्रेस दो भागों में बंट गया और यह गरम दल और नरम दल के नाम से इतिहास में जाना जाता है। अध्ययक्ष पद को लेकर पनपे झगड़े ने इतना जोर पकड़ा कि विशाल पार्टी दो भागों में बंट गई। मदनमोहन मालवीय जिन्होंने बालगंगाधर तिलक को बोलने से मना कर दिया जिससे चरमपंथी भड़क गए और अंडो,जूतों की बौछार शुरू कर दी ताकि बैठक निरस्त हो जाए । दरअसल, कांग्रेस का ही एक वर्ग चाहता था कि लाला लाजपतराय, या बाल गंगाधर तिलक कांग्रेस के अध्यक्ष बने मगर बात नहीं बनी।
आगे चलकर लाला लाजपतराय ने स्वतः ही रासबिहारी घोष के लिए पद छोड़ दिया विचार धाराओं के कारण यह दल बने आगे चलकर 1916 लखनउ पैक्ट के दौरान सरोजनी नायडू की मदद दोनों दल एक हुए। इस लखनऊ पैक्ट मे एक और बात हुई वह यह कि कांग्रेस और मुस्लिम लीग दानों ने राजनीतिक सुधार के लिए अंग्रेजों से एक साथ लड़ने में हामी भरी।
आश्चर्य जनक बिन्दुएं
- आजादी के बाद पार्टी के 18 अन्य अध्यक्षों में से 14 गांधी या नेहरू परिवार से नहीं थे।
- आजादी के बाद सोनिया गांधी पार्टी अध्यक्ष पद पर सबसे लंबे समय तक 19 वर्ष रही हैं। उनकी सास इंदिरा गांधी अलग-अलग कार्यकाल में सात वर्ष तक पार्टी अध्यक्ष रही हैं।
- सोनिया गांधी ने वर्ष 1997 में पार्टी की सदस्यता ली थी और अगले साल 1998 में पार्टी की अध्यक्ष बन गईं थीं।
- लाल बहादुर शास्त्री और मनमोहन सिंह कांग्रेस के दो ऐसे नेता रहे हैं, जो प्रधानमंत्री तो बने लेकिन पार्टी अध्यक्ष नहीं रहे हैं।
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क्या ब्रिटिश सरकार की मदद के लिए बनी थी कांग्रेस?
कांग्रेस के बारे में एक मिथक ये है कि एओ ह्यूम और उनके 72 साथियों ने अंग्रेज सरकार के इशारे पर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की थी।
माना जाता है कि उस समय के वायसराय लॉर्ड डफरिन के निर्देश पर ये संगठन इसलिए बना था ताकि 1857 की क्रांति की विफलता के बाद भारतीयों में पनप रहे असंतोष को फूटने से रोका जा सके। इस मिथक को कई जगहों पर सेफ्टीवॉल्व का नाम दिया गया था।
गरमपंथी नेता लाला लाजपत राय ने ‘यंग इंडिया’ में वर्ष 1961 में प्रकाशित अपने लेख में सेफ्टीवॉल्व की इस धारणा का इस्तेमाल कांग्रेस के नरमपंथी नेताओं पर प्रहार करने के लिए किया था।
कांग्रेस ने 1905 में बंगाल विभाजन के बाद अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन शुरू किया था। 1939 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संचालक एमएस गोलवलकर ने भी कांग्रेस की धर्मनिरपेक्षता के कारण उसे गैर-राष्ट्रवादी ठहराने के लिए सेफ्टीवॉल्व की धारणा का प्रयोग किया गया था।
आजादी के बाद कांग्रेस अध्यक्ष
आचार्य कृपलानी (1947-1948)
पट्टाभि सीतारमैया (1948-1950)
पुरषोत्तम दास टंडन (1950-1951)
जवाहरलाल नेहरू (1951-1955)
यू. एन. धेबर (1955-1959)
इंदिरा गांधी (1959-1960 और 1978-84)
नीलम संजीव रेड्डी (1960-1964)
के. कामराज (1964-1968)
एस. निजलिंगप्पा (1968-1969)
पी. मेहुल (1969-1970)
जगजीवन राम (1970-1972)
शंकर दयाल शर्मा (1972-1974)
देवकांत बरआ (1975-1977)
राजीव गांधी (1985-1991)
कमलापति त्रिपाठी (1991-1992)
पी. वी. नरसिंह राव (1992-1996)
सीताराम केसरी (1996-1998)
सोनिया गांधी (1998-2017)
राहुल गांधी (2017- 2019)
सोनिया गांधी (2019- 2022)
मलिक्कर्जुन खड़के (2022)