दवाईयां भी हो सकती हैं घातक
जरा भी स्वास्थ्य बिगड़ा और हम चिकित्सकों और दवाईयों के पीछे दौड़ पड़ते हैं और डाॅक्टर्स भी खान-पान, और दिनचर्या में आई अनियमितताओं की जानकारी लिए बिना ही बिमारी के लक्षण के आधार पर दवाईयां लिख देते हैं । शीघ्र स्वास्थ्य लाभ के लिए तथा कथित दवाईयों का उपयोग भी किसी
Tablets and Medicine. |
शरीर में रोग के कीटाणु किसी एक जगह एकत्रित नहीं रहते । अतः किसी निश्चित लक्ष्य पर दवाईयों का प्रयोग हीं किया जा सकता । दूसरी ओर शरीर के संरक्षक तत्व भी उन कीटाणुओं से युद्ध कर हें होते हैं और दवाईयों के प्रयोग से वे भी समाप्त होते चले जाते हैं संरक्षक तत्वों के विघटन के साथ ही शरीर की निरोधक सामथ्र्य भी घटनी शुरू हो जाती है व पुराने रोगों को पुनः उभरने व निश्चिंततापूर्वक अपनी विनाश लीला रचाने का अवसर मिल जाता है। जीवन शक्ति घट जानेसे क्षत -विक्षत शरीर पुरूषार्थ विहिन होकर किसी तरह जीवन के दिन पूरे करता है ।
दवाईयां ऐसी भी
लंदन के एक दैनिक अखबार Mirror में जीर्ण व खोए हुए स्वास्थ्य के पुनः युवावस्था में बदलने का एक विज्ञापन छपा था। इस दवा के उपयोग से सेवनकर्ताओं में कुछ दिन के लिए तो उत्तेजना आई, फिर वे और ज्यादा गई गुजरी हुई स्थिति में चले गए। इस दवा का निर्माण गर्भिणी भेड़ों के Fetus का सत निकालकर किया गया था। औषधियों के नाम पर मानवता और जन स्वास्थ्य के साथ किस प्रकार का खिलवाड़ किया जा रहा है, इसका विस्तृत वर्णन प्रसिद्ध अमरिकी वैज्ञानिक डाॅ. डब्ल्यू हिक्स ने अपनी Book " The Revolt Against Doctors" में किया है। उन्होंने लिखा है कि अनेक शोधों से यह तथ्य सामने उभरकर आया है कि, स्ट्रेप्टोमाइसिन के प्रयोग से आंखों व कानों में खराबी आती है। आक्सीटेट्रा-साइक्लिन के प्रयोग से पेट में तीव्र विष उत्पन्न होने लगता है । क्लोरम्फेनिकाॅल हडियों में खराबी उत्पन्न करता है जिसे शरीर का रक्त सूख जाता है।
पेनिसलीन की खोज
बहुप्रचलित पेनिसलीन की खोज से चिकित्सा जगत में एक तूफान आ गया था। डाॅक्टरों के हाथ में एक ऐसी चमत्कारी दवा आ गई थी जिससे मामूली निमोनिया से लेकर सुजाक यानि गोनेरिया तक को ठीक किया जासकता था, परंतु इस जादुई एंटिबायोटिक की यात्रा ज्यादा लंबी नीं रही और चिकित्सकों को इसकी प्रभावहीनता की खबरों के साथ त्वचा में दूषित प्रतिक्रिया होने की भी शिकायत मिलने लगी। साठ के दशक में थियेल्डोमाईट नामक औषधि ने बहुत कम समय में विश्व व्यापी ख्याति तनाव कम करने वाली औषधि के रूप में प्रसिद्धी अर्जित कर ली थी
विश्व बाजार में हैं ये प्रतिबंधित
ब्रूफेन, एस्प्रीन, नोवल्जिन, एंटरोस्ट्रेप, आस्टोरेन, ओरगामारीन, पामाजिन, सुगेनरील,बेरेल्गन, मेटाक्कीन, डायडोक्किन, एमजील, लार्जेसिक, एरीस्टोपायरीन आदि Medicine का विश्व बाज़ार में प्रतिबंध किया जा चुका है। विशेषज्ञों का मत हैै कि उपरोक्त दवाईयां मानव शरीर के लिए प्राणघातक हैं । ये मानव रक्त को प्रदूषित कर देती है।, जिसके कारण लकवा, कैंसर,अंधपन, अंगत्व एवं अतडियों में जख्म जैसे भयंकर रोगों का जन्म हो है।
विशेषज्ञों द्वारा किसी भी प्रकार की दवाईयों के सेवन से इंकार किया गया है। इनके अनुसार टाॅनिक में पाये जाने वाले कैफिन एवं स्ट्रकनीन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित होते हैं ।
विशेषज्ञों द्वारा किसी भी प्रकार की दवाईयों के सेवन से इंकार किया गया है। इनके अनुसार टाॅनिक में पाये जाने वाले कैफिन एवं स्ट्रकनीन स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित होते हैं ।
इसे भी पढ़िए
वास्तव में शरीर की मूल प्रवृति अस्वस्थ हेने की ही नहीं। मौसम का प्रभाव, वंशानुगत विकार, छूत या दुर्घटना आदि कारणों से अप्रत्याशित रोग हो सकते हैं, पर इनका अनुपात अत्यन्त कम होता है। आपत्तिकालीन सुरक्षा के लिए दवाईयां ली जा सकती हैं । उन्हें न छूने जैसा दुराग्रह अपनाने की आवश्यकता नहीं । ध्यान रखने की बात है कि स्वास्थ्य-रक्षा नियमों का कड़ाई से पालन किया जाये, अन्यथा औषधि अपचार का लाभ मात्र जादुई तमाशा बनकार रह जाएगा। जहां तक संभव हो ,पीड़ा सहन करने की आदत डालनी चाहिए। इससे कष्ट तो होता है, परंतु रोग की निवृति में बहुत सहायता मिलती है। कष्ट की अनुभूति घट जाने से विकृति को परास्त करने की चिंता से मस्तिष्क को छुट्टी मिल जाती है एवं रोग निवारक संघर्ष तीव्र होने के बजाय शिथिल पड़ जाता है।
प्रयास यह होना चाहिए कि पहले अपने खान-पान एवं दैनिक क्रम में आई गड़बड़ियों का अवलोकन कर उसका समाधान किया जाय ।