वैसे तो भारत में त्योहारों का सिलसिला सितम्बर में ही शुरू हो जाता है और प्रत्येक त्यौहार का अपना महत्व होता है / तुलसी हम सभी जानते है और इसके औषधीय गुणों से सभी भली- भांति परिचित है / दीपावली के 11 दिन में हम एक त्यौहार तुलसी पौधे को ही समर्पित करते है जिसे तुलसी विवाह या एकदशी कहा जाता है / इस ब्लॉग के माध्यम से मै आपको तुलसी विवाह मनाये जाने के बारे में बताता हूँ /
बस्तर में मनाये जाने वाले त्योहारों के बारे में जानने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कीजिये /
नयाखानी क्या है ?
तुलसी के औषधीय गुणों की वजह से ही आयुर्वेद तुलसी के पत्ते को एक औषधि के रूप में आदि काल से उपयोग करता आया है / अगर तुलसी विवाह के पौराणिक रूप में नज़र डाले तो एक नयी कहानी निकल कर आती है / जिसे यहाँ चर्चा करना ज़रूरी हो जाता है /
कौन थी तुलसी :-
पुराणों में तुलसी के बारे में ज़िक्र किया गया है / इस में यह कहा गया है कि तुलसी राक्षस कुल में जन्मी के विष्णु भक्त थी / उसका नाम वृंदा था , उसकी भक्ति से भगवान् खुश रहते थे , आगे चल कर उसका विवाह रक्षक कुल में ही जालंधर नाम के राक्षस से हुआ /
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देवता-असुर की लड़ाई:-
एक समय जब एसा आया कि देवता और राक्षसों में जंग छिड़ी , और जालंधर को भी उसमे हिस्सा लेना पड़ा / जब जालंधर लड़ाई में जाने लगा तो तुलसी ने उसे विदा करते समय कहा कि जब तक आप नही लौटेंगे मै आपके लिए पूजा-अर्चना करती रहूंगी !
तुलसी ने वैसा ही किया , तुलसी की भक्ति के बल पर जालंधर देवताओं पर भारी पड़ने लगा और देवता लड़ाई के मोर्चे पर हरने लगे /
इधर जालंधर को भी घमंड हो गया की उसे कोई नही हरा सकता / और वह स्वर्ग की दूसरी कन्याओं पर अत्याचार करने लगा / तब देवताओं ने भगवान् विष्णु के पास जाकर विनती की और कहा की इससे तो मानव जाती का विनाश हो जाएगा और कोई भी नही बचेगा ? विष्णु ने कहा ये वृंदा की भक्ति की ताकत है जिससे जालंधर की विजय हो रही है /
विष्णु भगवान् का वह कदम:-
तब विष्णु ने देवताओं की विनती पर ,मानव जाति के लिए जालंधर के रूप लिया और वृंदा के पास गए , वृंदा ने भी अपने पति को सुरक्षित पाकर अपनी प्रार्थना बंद कर दिया /
उधर जालंधर की शक्ति प्रार्थना के बंद होते ही ख़त्म हो गई और वह देवताओं के हाथों मारा गया /
कौन है शालिग्राम:-
भगवान् को पत्थर बनना पड़ा -जब वृंदा को ये बात पता चली तो उसने गुस्से में भगवान् को श्राप दिया जिससे विष्णु पत्थर के बन गए / भगवान् के पत्थर बनते ही देवताओं में हडकम्प मच गया वे वृंदा के पास जाकर श्राप वापस लेने का अनुरोध करने लगे जिसे वृंदा मान गई और भगवान् विष्णु को फिर से उसी रूप में आ गए मगर वृंदा के साथ किया गए कृत्य पर वे काफी लज्जित हुए , और वृंदा के श्राप को जिन्दा रखने के लिए अपना एक प्रतिरूप एक पत्थर में भी रखा जिसे शालिगराम कहा जाता है /
तुलसी कैसे बनी वृंदा:-
इधर वृंदा श्राप वापस लेने के बाद सती हो गई और उसके चिता की राख से एक पौधा निकला जिसे तुलसी कहते है /
और आगे चलकर वृंदा की मर्यादा और पवित्रता के लिए देवताओं ने तुलसी और शालिग्राम का विवाह कार्तिक शुल्क एकादशी (देव प्रबोधनी एकादशी ) को करा दिया / भगवान् विष्णु ने भी शालिग्राम के रूप में तुलसी को लक्ष्मी से ज्यादा दर्जा दिया और कहा कि मै बिना तुम्हारे कुछ भी खाने की चीज़े स्वीकार नही करूँगा और इसीलिए बिना तुलसी को चड़ाए भगवान् विष्णु को नही चड़ाया जाता है / इसीलिए तुलसी का स्थान हमेशा शीर्ष में ही होता है / इसी दिन कार्तिक एकादशी होती है /
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