आज मै “स्टेचू ऑफ़ यूनिटी” यानि “एकता की मूरत” के बारे में चर्चा करने जा
रहा हूँ , जिसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्र को समर्पित किया / इसमें गर्व
करने वाली बात ये है कि यह मूर्ति विश्व की सबसे ऊँची मूर्ति बन चुकी है और पर्यटन
के
लिहाज से यह पर्यटन प्रेमियों के लिए सदा आकर्षण का केंद्र है और रहेगी / इसकी ऊँचाई 182 मीटर है यानि 597. 113 फीट है / ये मूर्ति भारत के प्रथम उप- प्रधानमंत्री और गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल की है / आज़ादी के बाद देशी रियासतों के विलय करण में उनके अमूल्य योगदान को कृतज्ञ राष्ट्र हमेशा याद रखेगा / यह मूरत एक प्रयास है उनके योगदान को याद करने का /
लिहाज से यह पर्यटन प्रेमियों के लिए सदा आकर्षण का केंद्र है और रहेगी / इसकी ऊँचाई 182 मीटर है यानि 597. 113 फीट है / ये मूर्ति भारत के प्रथम उप- प्रधानमंत्री और गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल की है / आज़ादी के बाद देशी रियासतों के विलय करण में उनके अमूल्य योगदान को कृतज्ञ राष्ट्र हमेशा याद रखेगा / यह मूरत एक प्रयास है उनके योगदान को याद करने का /
अब इसके अन्दर
क्या है इसकी बात करते है मगर इससे पहले
विश्व की दूसरी अन्य ऊँची इमारतों का ज़िक्र करना भी लाज़मी हो जाता है/
दूसरी बड़ी मूर्तियाँ दुनिया में और कहाँ-कहाँ है ?
बुद्ध स्प्रिंग मंदिर है जो चीन में है
जिसके ऊंचाई – 153 मीटर है यानि 29 मीटर कम
फिर अमेरिका की स्वतंत्रता की मूर्ति
है जो 93 मीटर है और 89 मीटर कम है /
तीसरे नंबर पर है रूस में स्थित मदर
लैंड कॉल्स नामक मूर्ति है जो 85 मीटर
यानि 97 मीटर कम है /
और 40 मीटर की चौथे नंबर पर है
क्राइस्ट रिडीमर है और ये ब्राज़ील में है / और ये भी 142 मीटर कम है
/
दुसरे शब्दों में भारत की “स्टेचू आफ
यूनिटी” विश्व की सर्वोच्च मूर्ती है /
भारत में कहाँ है ये मूर्ती ?
विश्व की सबसे बड़ी मूर्ति होने का गौरव अब जिसे
प्राप्त है वो स्थित है गुजरात के केवड़िया में और ये गुजरात के बड़ोदरा से 90 किमी दूर और सरदार सरोवर बांध के नजदीक बनी है जिसका नाम है साधू बेटा द्वीप और ये द्वीप नर्मदा नदी में है /
250 इंजिनियर तथा 3 हज़ार 400 मजदूरों
की कड़ी मेहनत के बाद 3 साल 9 महीने में ये तैयार हो पाया /
गुजरात सरकार तथा केंद्र सरकार के
संयुक्त योगदान के चलते इसे बनाने में 2,97 9 करोड़ रूपये लगे /
क्या लगा है इसे बनाने में :-
सबसे पहले तो मै बात करता हूँ
मैटेरियल्स की तो इसे बनाने में सत्तर हज़ार मीट्रिक टन सीमेंट लगा है /
2
लाख 12 हज़ार क्यूबिक मीटर कंक्रीट लगा
है इतना ही नही1 8 हज़ार टन रेंफोर्स स्टील
और 6 हज़ार 500 मीट्रिक तन स्ट्रक्चरल स्टील लगा है,
इसमें 22 हज़ार स्क्वायर मीटर कांसे की
प्लेटें लगी है / इन सबका वज़न मूर्ति के पैरों में आ रहा था तथा देश में मौजूद सभी
ढलाई घरों के लिए ये मुश्किल हो रहा था तब चीन की कम्पनी जियांग्जी टोकिन कंपनी को ये काम सौंपा गया फिर ढलाई का
काम शुरू होते ही एक एक करके कांसे की
प्लेटें चीन से आने लगी / कुल 7 हज़ार प्लेटें लगी है / और ये प्लेट वेल्डिंग द्वारा एक
दुसरे से जुडी है /
93 वर्षीय प्रसिद्ध मूर्तिकार राम
सुतार ने इस विशाल काय मूर्ति की डिजाईन तैयार की है , पद्मश्री तुषार ने महात्मा
गाँधी की मूर्ति भी बनायीं है जिसे न केवल भारत बल्कि रूस, इंग्लैंड , फ्रांस तथा
इटली में स्थापित किया गया है /
क्या खूबियाँ है इसमें ?
ये 180 किमी प्रतिघंटे की रफ़्तार से
चलने वाली हवा को ये मूर्ती सहन कर सकती है तथा 12 किमी के परिधि में 6.5 रिएक्टर
स्केल के भूकम्प जो पृथ्वी के 10 किमी अंदर
होंगे उसे ये सहन कर सकती है / इतना ही नही पिछले 100 वर्षों के बाड़ रिकॉर्ड को
ध्यान में रखकर इसकी ऊंचाई बनाये गई है /
इस मूर्ति को 5 जोन में विभाजित किया गया है जिसमे लाइब्ररी , सरदार
पटेल मेमोरियल, सरदार सरोवर बांध का आकाशीय अवलोकन किया जा सकता है /
पर्यटन के लिहाज से इस प्रतिमा से
सरकार को लाखो में आमदनी होने की उम्मीद है /
देश के प्रति उनका योगदान:-
पटेल भारत के पहले उपप्रधान मंत्री, गृहमंत्री सूचना तथा रियासत विभाग थे, इनका जन्म गुजरात के गुजरात के नाडियाद के लेवा पटेल परिवार में हुआ । महात्मा गांधी के विचारों से प्ररित होकर उन्होंने भारतीय स्वाधीनता की लड़ाई में हिस्सा लिया । खेड़ा (1918) और बारडोली सत्याग्रह में किसानों के पक्ष में इन्होंने अभूतपूर्व काम किया। अंग्रेजों ने किसानों पर जब कर काफी ज्यादा लगा दिया था तो खेड़ा में इन्होने किसानों का साथ दिया और 30 प्रतिशत कर के बोझ से किसानों को मुक्ति दिलाई। और बारडोली मे गांधी जी के साथ मिलकर 22 प्रतिशत कर को 6 प्रतिशत करवाया । यह आंदोलन 1928 को हुआ था ।
जब देश आजाद हुआ तो गृहमंत्री के रूप में पटेल ने देशी रियासतों को एक करने में काफी अहम भूमिका निभाई । और भारत संघ में इन्हें शामिल किया। ये उन्हीं कि प्रयासों का नतीजा है कि भारत आज अखंड है अन्यथा 300 से ज्यादा देशों में यह बट चुका होता। वे अपने निर्णयों में अडिग रहते थे । रियासतों के विलय करने में अग्रहणी भूमिका के कारण ही इन्हे लौह पुरूष कहा जाता है ।
सरदार पटेल सहज भाव से तार लिया, उसे पढ़ा और अपनी जेब में उसे रखकर जिरह करने में लग गए। काफी समय बाद जब कोर्ट का समय समाप्त हुआ और किसी मित्र ने पूछा कि ’’ वह तार कैसा था ? किसका था? ’’ तब पटेल ने कहा कि वह मेरी पत्नि की मौत का तार था। मित्र ने कहा पत्नि की मौत की खबर ने आपको विचलित नहीं किया और तुम बहस करते रहे? ’’ पटेल ने कहा ‘‘ क्या करता ? वह तो चली गई । अभियुक्त को भी चला जाने देता क्या?
दूसरा किस्सा सरदार वल्लभ भाई पटेल का है जब वे स्कूल में थे उनके शिक्षक की क्लास थी और वे नहीं पढ़ाने नहीं आए । कार्यालय में बैठे गप्पे हांक रहे थे । पटेल ने अपने साथियों के साथ कुछ देर उनकी राह देखी फिर जोर जोर से गाना गाने लग गए। फिर क्या था गाने की आवाज़ कार्यालय तक पहॅुची जहां अध्यापक महोदय बैठे गप्पे मार रहे थे। वे दौड़े -दौड़े आए और बच्चों को डांटने फटकारने लगे ।
इस पर पटेल ने कहा -क्या करते सहाब! आप आए नही गप्पे मारते रहे ंतब हम क्या करते गाते नही तो क्या रोते।’’
पटेल की ये बातें सुनकर अध्यापक ने उन्हें क्लास छोड़ कर निकल जाने को कहा । पटेल ने सहज भाव से अपनी किताबे सम्भालीं और अपने साथियों की तरफ देखा और क्लास से बाहर निकल गए। टीचर ने अचरज का ठिकाना नहीं रहा जब उन्होंने देखा कि उनके कक्षा के बाकि बच्चे भी अगले ही क्षण बाहर निकल गए और फिर अगले दिन भी कोई नहीं आया। यह बात प्रधान अध्यापक तक पहूॅची तो उन्होने पटेल से कहा कि माफी मांग लो पटेल ने कहा -’’उल्टा चोर कोतवाल को डांटे, मास्टर सहाब कक्षा में नहीं आए तो हम क्या करते सो गाने लगे । इसीलिए माफी तो इन्हें मांगनी चाहिए!
प्रधान अध्यापक समझदार थे उन्होंने मामले को समझा और अध्यापक से कहा कि उनकी ही वे बच्चों से वादा करें कि इसी गलती नहीं करेंगे। दूसरे दिन पूरे बच्चे कक्षा में माजूद थे। उनकी बातों में बड़ी दृढ़ता होती थी और स्वयं बड़े दृढ़ निश्चयी थे । सरदार पटेल के कुशल नेतृत्व और दृढ़ता का परिणाम है कि भारत आज अखंड है अन्यथा स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद कई छोटे -छोटे देशों में यह बदल चुका होता।
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How to track measles and rubella
कौन है सरदार पटेल ? क्यों इन्हें लौह पुरूष कहा जाता है?
प्रारम्भिक जीवन :-सरदार पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात के नाडियाद में एक लेवा पटेल यानि पाटीदार परिवार में हुआ था । वे अपने पिता की चैथी संतान थे। उन्होंने इंग्लैड से बैरीस्ट्री शिक्षा प्राप्त की थी और अहमदाबाद में वकालत कर रहे थे 15 दिसंबर 1950 को देश की महान विभूति ने अपना पार्थिव शरीर त्याग दिया ।
सरदार पटेल के बारे में विस्तृत जानकारी जानने के लिए लिंक पर क्लिक कीजिए
SARDAR VALLABH BHAI PATELदेश के प्रति उनका योगदान:-
पटेल भारत के पहले उपप्रधान मंत्री, गृहमंत्री सूचना तथा रियासत विभाग थे, इनका जन्म गुजरात के गुजरात के नाडियाद के लेवा पटेल परिवार में हुआ । महात्मा गांधी के विचारों से प्ररित होकर उन्होंने भारतीय स्वाधीनता की लड़ाई में हिस्सा लिया । खेड़ा (1918) और बारडोली सत्याग्रह में किसानों के पक्ष में इन्होंने अभूतपूर्व काम किया। अंग्रेजों ने किसानों पर जब कर काफी ज्यादा लगा दिया था तो खेड़ा में इन्होने किसानों का साथ दिया और 30 प्रतिशत कर के बोझ से किसानों को मुक्ति दिलाई। और बारडोली मे गांधी जी के साथ मिलकर 22 प्रतिशत कर को 6 प्रतिशत करवाया । यह आंदोलन 1928 को हुआ था ।
जब देश आजाद हुआ तो गृहमंत्री के रूप में पटेल ने देशी रियासतों को एक करने में काफी अहम भूमिका निभाई । और भारत संघ में इन्हें शामिल किया। ये उन्हीं कि प्रयासों का नतीजा है कि भारत आज अखंड है अन्यथा 300 से ज्यादा देशों में यह बट चुका होता। वे अपने निर्णयों में अडिग रहते थे । रियासतों के विलय करने में अग्रहणी भूमिका के कारण ही इन्हे लौह पुरूष कहा जाता है ।
सरदार पटेल के जीवन की कुछ घटनाएं
सरदार एक बार वे एक हत्या के मामले में सुनवाई कर रहे थे । मामला इतना संगीन था कि जरा सी भी चूक हो जाती तो अभियुक्त की फांसी तय थी। तभी उनके पास एक टेलीग्राम आया ( उस जमाने में तत्काल संदेश पहूॅंचाने का एक मात्र जरिया होता था जिसे टेलीग्राम कहते थे। जिसे पोस्टल विभाग भेजा करता था और एक विद्युतीय तंरगों से लिखित स्लिप में भेजा जाता था। )सरदार पटेल सहज भाव से तार लिया, उसे पढ़ा और अपनी जेब में उसे रखकर जिरह करने में लग गए। काफी समय बाद जब कोर्ट का समय समाप्त हुआ और किसी मित्र ने पूछा कि ’’ वह तार कैसा था ? किसका था? ’’ तब पटेल ने कहा कि वह मेरी पत्नि की मौत का तार था। मित्र ने कहा पत्नि की मौत की खबर ने आपको विचलित नहीं किया और तुम बहस करते रहे? ’’ पटेल ने कहा ‘‘ क्या करता ? वह तो चली गई । अभियुक्त को भी चला जाने देता क्या?
दूसरा किस्सा सरदार वल्लभ भाई पटेल का है जब वे स्कूल में थे उनके शिक्षक की क्लास थी और वे नहीं पढ़ाने नहीं आए । कार्यालय में बैठे गप्पे हांक रहे थे । पटेल ने अपने साथियों के साथ कुछ देर उनकी राह देखी फिर जोर जोर से गाना गाने लग गए। फिर क्या था गाने की आवाज़ कार्यालय तक पहॅुची जहां अध्यापक महोदय बैठे गप्पे मार रहे थे। वे दौड़े -दौड़े आए और बच्चों को डांटने फटकारने लगे ।
इस पर पटेल ने कहा -क्या करते सहाब! आप आए नही गप्पे मारते रहे ंतब हम क्या करते गाते नही तो क्या रोते।’’
पटेल की ये बातें सुनकर अध्यापक ने उन्हें क्लास छोड़ कर निकल जाने को कहा । पटेल ने सहज भाव से अपनी किताबे सम्भालीं और अपने साथियों की तरफ देखा और क्लास से बाहर निकल गए। टीचर ने अचरज का ठिकाना नहीं रहा जब उन्होंने देखा कि उनके कक्षा के बाकि बच्चे भी अगले ही क्षण बाहर निकल गए और फिर अगले दिन भी कोई नहीं आया। यह बात प्रधान अध्यापक तक पहूॅची तो उन्होने पटेल से कहा कि माफी मांग लो पटेल ने कहा -’’उल्टा चोर कोतवाल को डांटे, मास्टर सहाब कक्षा में नहीं आए तो हम क्या करते सो गाने लगे । इसीलिए माफी तो इन्हें मांगनी चाहिए!
प्रधान अध्यापक समझदार थे उन्होंने मामले को समझा और अध्यापक से कहा कि उनकी ही वे बच्चों से वादा करें कि इसी गलती नहीं करेंगे। दूसरे दिन पूरे बच्चे कक्षा में माजूद थे। उनकी बातों में बड़ी दृढ़ता होती थी और स्वयं बड़े दृढ़ निश्चयी थे । सरदार पटेल के कुशल नेतृत्व और दृढ़ता का परिणाम है कि भारत आज अखंड है अन्यथा स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद कई छोटे -छोटे देशों में यह बदल चुका होता।
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