मै बस्तर का रहने वाला हूॅ और बस्तर की बात बताता हॅू। प्राचीन बस्तर को अनेक नामें से जाना जाता था । महाकंतार? महअटवि, दण्डकारण्य, भ्रमरकोट, और चित्रकोट ।
एर्राकेट चपका, केसरपाल, टेमरा, नारायणपाल, गढ़िया, ढोढरेपाल चित्रकोटख् कुरूसपाल सोनारपाल, अड़ेंगा, गढ़ धनोरा भेंगापाल, समलूर चिंगीतरई छज्ञेटेडोंगर, बड़ेधाराउर बोदरा छिंदगांव, सिंगनपुर घेटिया, बस्तर, केशकाल, मद्देढ़ , भोपालपट्टनम भेरमगढ़, बारसूर तथा दंतेवाड़ा आदि ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व के क्षेत्र है जहां पर पुरवशेष प्राप्त होने का सिलसिला आज भी जारी है।
बस्तर के प्रमुख राजवंश:-
पुरातात्विक अभिलेखों से ज्ञात होता है कि यहां लम्बे समय तक नल-नागवंश के शासकों की हुकुमत चलती थी। जो चौदहवीं सताब्दी तक मानी जाती है। दोनों राजवंशों की राजधानी इंदिरावती नदी के तट पर ही थी । नलवंश के बाद बस्तर में छिदंक नागवंश का शासन काल था। इतिहास कारों की माने तो नाग वंशीय शासन काल में ही मंदिरों का निर्माण हुआ जो आज भैरमगढ दंतेवाड़ा, बारसूर में स्थित है और बस्तर के इतिहास को जानने समझने का सूत्र देते है ।
छिंदक नागवंश के पश्चात बस्तर में चालुक्यवंश ने चौदहवी षताब्दी से लेकर 1947 तक राज्य किया । देष में स्वतंत्रता के बाद जनवरी 1, 1948 को भारत के विभिन्न गणराज्यों के साथ बस्तर राजतंत्र को भी लोकतंत्र में विलीन कर दिया गया ।
इस ब्लॉग का उद्देष्य है कि आपके समक्ष बस्तर के उन एतिहासिक जगहों के बारें में एक झलक बताना जिन्हें जानने का हर बस्तरवासी को हक है ।
क्या खास है बारसूर में :-
बस्तर के समृद्धशाली इतिहास में बारसूर का विशेष स्थान है। बस्तर के कई राजवशों के उदय और पतन की गाथाएं इतिहास के पन्नों में मिल जाती है।
एक मान्यता के अनुसार बारसूर का नामकरण बाणसुर के नाम पर हुआ। जब आप बारसूर में जाए तो आपको एतिहासिक महत्व के भवन कई जगहों पर मिल जाएंगे । बारसूर में सवत्र प्राचीन प्रतिमाएं विखरी पड़़ी है। यहां के गणें मंरिए पेदम्मा गुड़ी,मामा-भांचा मंदिर, बत्तीसा मंदि, चन्द्रादित्य मंदि पहाड़ी चट्टान पर स्थित हिरमराज मंदि, सोलह खंबा, मावली मंदिर सहित अनगिनत ज्ञात-अज्ञात पुरातात्विक धरोहर मौजूद है। प्रचलित लोक कथा के अनुसार यहां 147 तालाब और उतने ही देवालयों का निर्माण किया गया । यहीं कारण है कि आज भी अनेक तालाब और मंदिर अवषेश के रूप में मौजूद है।
बारसूर में अनेक प्रतिमाए मौजूद है जो छिंदक नाग वंशीय कला की उत्कृष्ट मिसाल देती है । यहां एक छोटे संग्राहलय में षिव-पार्वती, विश्णु, काली भेरव, चामुण्डा, ब्रम्हा, लक्ष्मी गणेश ,दिक्पाल आदि की प्रतिमाएं सुरक्षित रखी गई है।
बारसूर स्थित पेदम्मगुड़ी जहां कम ही लोग पहूॅचते है। पदम्मा को तेलुगु शब्द है "बड़ी मां" । दंतेश्वरी के एक रूप को पदम्मा यानि बड़ी माई के नाम से भी जाना जाता है। बारसूर में पेदम्मा गुढ़ी मौजूद है जिसमें कहा जाता है कि दंतवाड़ा की दंतेश्वरी की मूर्ति सबसे पहले यहीं स्थापित की गई थी बाद में इसे दंतेवाड़ा ले जाकर स्थापित किया गया ।
इसे भी पढ़िए
बारसूर का बत्तीसा मंदिर
इसे भी पढ़िए
बारसूर का बत्तीसा मंदिर
दंतेवाड़ाः-
आज दंतेवाड़ा एक शक्ति पीठ है के रूप् में विख्यात है और दंतेश्वरी देवी को ,देवी दुर्गा का प्रतिरूप मान पूजा की जाती है । देवी मां के मुख मण्डल में अपूर्व तेजस्विता विद्यमान है जिनकी आंखे निर्मित है। गहरे चिकने काले पत्थरों से निर्मित मूर्ति के छः भुजाएं है जिनमें शंख, खड्ग त्रिशूल, घंटा पाश और एक हाथ से राक्षस के बाल पकडे़ हुए है । मूर्ति का एक पॉव सिंह पर रखा हुआ है । माई जी प्रतिमा के पैरां के समीप राहिनी ओर एक पाद भेरव की मूर्ति तथा बाई ओर भैरवी की मूर्ति स्थापित है माई दंन्तेश्वरी जी के भव्य मूर्ति के पीछे पृष्ठ भाग पर मुकुट के उपर पत्थर से तराशी गई कलाकृति, नरसिंह अवतार के द्वारा हिरण्य कश्यप के संहार का दृश्य है।
इसे भी पढ़िए जगदलपुर का राजमहल