क्या टैटू या गोदना आधुनिक फैशन की निशानी है ?
Modern Tattoo (photo-Google) |
आज अपने आस पास बहुत सी एसी चीज़े नज़र
आती है जिन्हें फैशन के तौर पर हम उन्हें “लेटेस्ट है” कहते नही थकते / एसा ही एक फैशन आज कल चल पड़ा है वो है टैटू बनाना /
युवा वर्ग का ये क्रेज आज भले ही सर चढ़ कर बोल रहा है लेकिन ये फैशन इस फैशन को
लेटेस्ट कहना गलत होगा क्योकिं ये सदियों से चली आ रही है आइये जाने टैटू का चलन
कहाँ कहाँ था? लोग क्यों टैटू बनाते थे ?
सबसे पहले तो मै अपने जिले की ही बात
करूँ तो यहाँ आदिवासी महिलाएं सदियों से
अपने शरीर पर बनती आ रही है , ये टैटू सामान्य तौर पर वे हाथों बाँहों पर बनती है / सामाजिक प्रतिष्ठा , वर्ग
जताने के लिए आदिवासी टैटू बनाते है /इसे आदिवासी “गोदना” कहते है और उनके लिए ये
फैशन न हो कर सामाजिक वर्ग दर्शाने वाला होता है /
मगर आज की युवा पीड़ी टैटू अपने प्रतिक
व खास सन्देश के लिए बना रही है / युवाओं में अर्ध विराम का टैटू बनाने का आजकल काफी क्रेज है , कुछ लोग प्रतिक स्वरुप भी टैटू बना रहा है/
ये दो प्रकार के होते है
स्थाई टैटू के कुछ साईड इफेक्ट भी है
जो सीधा स्किन पर प्रभाव डालते है , इसके बारे में थोड़ी चर्चा ब्लॉग के अंत में
करना चाहूँगा , मगर पहले आपको इसके इतिहास की झलक दिखाना चाहता हूँ /
चलिए बात करते है इसके इतिहास की
क्या है इतिहास में :-
चीन :-
सदियों पूर्व चीन में लोग जो
असभ्य समुदाय के होते थे वे प्रायः टैटू
अपने शरीर पर बनाते थे / फिर चीनी साहित्य में नायकों और डाकुओं के शरीर पर टैटू
दिखाकर साहित्यकारों ने इसे खास बनाना शुरू कर दिया / और लोग एक प्रथा या ज़रूरत के
हिसाब से अपने शरीर को गोदना शुरू कर दिए ( आज का फैशन भी यही कर रहा है )
फिर दासों के शरीर पर उनकी पहचान के
लिए अलग –अलग प्रतिकात्मक टैटू बनाये जाने लगे जिनसे उनकी अलग से पहचान हो सके/ तो
दास प्रथा का ये प्रतिक बन गई /
मिश्र :
मिश्र में टैटू युक्त ममी मिली
है , और जाँच में यह पता चला है कि यहाँ महिलाएं ही टैटू बनती थी , संभवतः सजा या
धार्मिक कारणों से / प्राचीन साहित्य में रोगों के इलाज लिए भी टैटू बनाने का
ज़िक्र मिलता है हालाँकि इतिहासकारों में इस विषय को लेकर अभी भी संदेह है /
Tattoo found in excavation (photo-speaking tree) |
भारत में टैटू को गोदना कहा जाता है
(हमारे आदिवासी भी इसे गोदना ही कहते है ) जबकि दक्षिण भारत में इसे पच कुर्थू
कहते है / 1980 के दशक में तमिल नाडू में यह बहुत ही कॉमन था -ज़ाहिर है जनजातियों
में/ सभ्य समाज में तो कतई नहीं /
फिर इसकी जगह महेंदी ले ली जो अस्थाई
होती थी – फिर महेंदी का उपयोग हाथों तथा पैरों पर अलग अलग आकार दिया जाता था यह
टैटू तो नही मगर टैटू जैसा ही होता था लोग अपना शौक पूरा कर लेते थे , क्योकि कुछ
दिनों तक ही शरीर पर मेहंदी से आकृतियाँ बनायीं जा सकती थी / मेहंदी चुकिं हर्बल
होती थी तो इसके दुष्परिणाम की गुंजाईश कम ही होती थी –
इसे भी महिलाये ही लगाती थी , आज भी
पुरुषों में महेंदी का चलन नही मिलता है
महेंदी का विस्तार इतना हुआ कि मध्य
पूर्व एशिया से अफ्रीका तक फैला , वैसे मिश्र में मेहंदी बालों को रंगने के लिए
प्रयोग किया जाता था /
चलिए , टैटू की बात आगे बढ़ाते है/
फिलिपिन्स :
फिलिपिन्स में टैटू सामाजिक हैसियत या
जादू टोने का प्रतिक था / यहाँ कलिंग, इफुनाओ ,बोटोक इगोरट जनजातीय समुदाय के लोग
ही टैटू बनाते थे /
अब जापान में टैटू अन्य देशों
की तुलना में काफी बाद में आया / जापान में इसका चलन 1603 से 1868 के बीच ही मिलता
है / यहाँ निम्न दर्जे के लोग ही टैटू बनाया करते थे ताकि सामाजिक पहचान कायम रह
सके फिर 1720 से 1870 के मध्य कुछ जापानी अपराधियों में भी कानून टैटू बनाये जाने
लगे ताकि उनकी पहचान हो सके /
एक मजेदार बात जापानी टैटू में यह थी
कि यहाँ अपराधियों के कलाई पर रिंग बनाकर सजा ख़त्म होती थी अगर , दुबारा वही
अपराधी आता था तो सजा समाप्ति पर दूसरा रिंग बना दिया जाता था , यानि जितनी रिंग
उतना बड़ा अपराधी / इससे उसकी अपराध की संख्या का भी पता चलता था /
Tribal Woman with Tatoo in the Face (Photo- Abhishek Thakur) |
इतना तो साफ़ है कि टैटू बनाने का
चलन निम्न समझी जाने वाली जातियों या
समुदायों में ही था जो सामाजिक अलाव बताते
थे , फिर आगे चलकर अपराधियों में ये बनाये
जाने लगे जिससे उनको औरों से अलग रखा जा सके /
आज के समय में टैटू फैशन ज़रूर है मगर
इसके पीछे इसके इतिहास पर गौर करे तो पता चलता है ये चलन सभ्य समाज में नही था ,
यह एक ही बात दर्शाता था , वह था -सामाजिक अलगाव/
आधुनिक चिकत्सा विज्ञान क्या कहता है टैटू के बारे में ?
त्वचा या स्किन पर किसी भी बाहरी स्थाई
चीज़ को लगाना चिकित्सकों के माने तो नुकसान देह है/
जैसे इससे स्किन पर रिएक्शन हो सकता है
, मेडिकल साइंस कहता है कि ब्लैक डाई का टैटू मानव शरीर की स्किन के लिए खतरनाक हो
सकता है /
अगर पुरने सुई से टैटू बनाई जाती है तो
टिटनेस या हैपेटाइटिस का खतरा बड़ सकता है ,शराब पीकर टैटू नही बनाना चाहिए
क्योंकि इससे खून बहते है और ब्लीडिंग जैसी समस्या बन सकती है
टैटू बनाने के बाद नार्मल होने में
करीब दो हफ्ते का समय लगता है , इस दौरान उस जगह पर खुजलाना नही चाहिए / स्किन पर
बुरा पड़ता है / और खास बात यह है कि टैटू वाले स्थान पर घाव न हो इस का ध्यान रखें
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